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________________ तस्वार्थसून-निकव / VIII पुखर हुई। इससे अद्भुत बात यह हुई कि तीन दिन के 8 सत्रो मे श्री प्रमाणसागर जी ने अपने मगल प्रवचनो के माध्यम से प्रत्येक शोधालेव की एक निष्पक्ष समीक्षा प्रस्तुत की। सम्पूर्ण कार्यक्रम पूर्ण आध्यात्मिक वातावरण में सम्पन्न हुआ। दोनों संगोष्ठी के संयुक्त शोधपत्रों के प्रकाशन की योजना बनी। संगोष्ठी के उदघाटन सत्र के मुख्य अतिथि अवधेशप्रतापसिंह विश्वविद्यालय रीवा के कुलपति माननीय डॉ. ए. एन. डी. वाजपेयी की उपस्थिति ने इसके सार्वभौमिक स्वरूप को एक खुला निमन्त्रण दिया, जो संयम साधक पुरुष हैं। इसी प्रकार संगोष्ठी का समापन सत्र उज्जैन के वरिष्ठ साहित्यकार एव मनीषी डॉ राममूर्ति त्रिपाठी की अध्यक्षता में सम्पन्न हआ। आपका विद्वत्ता पूर्ण भाषण सगोष्टी को एक प्रशस्त तिलक स्वरूप था। विद्वानों के इन शोधालेखों के प्रकाशन की योजना जैन समाज सतना ने बनायी है और इसे पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित कर सतना वर्षायोगा के अविस्मरणीय क्षणो को भी साथ मे समायोजित कर देना प्रस्तावित हुआ । सतना में पूज्य मुनि श्री का वर्षायोग कई मायनो मे अभूतपूर्व रहा। इसके विषय में पृथक्-पृथक् रिपोर्टस पीछे दी ही हैं। तत्वार्वसूत्र-निका (सतना वर्षायोग स्मारिका 2004) वस्तुत मुनिश्री के अभिनव व्यक्तित्व की यशोगाथा का धवल अक्षत है, जिसे प्रकाशित करके दिगम्बर जैन समाज ने अपना महनीय गौरव बढ़ा लिया इसमें शोधालेखों का क्रम तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय क्रम के अनुसार निबब्द है। इसे किसी अन्य विकल्प से मुक्त स्वा गया है । यद्यपि कोशिश तो की बई है कि प्रत्येक अध्याय की विषयवस्तु को रपष्ट करने वाले शोधपत्र हों। जहाँ पूर्ति न हो सकी, वे स्थल कम ही है और उनकी पूर्ति कर पाना सामयिक परिस्थितियों में सभव ही नही था। . संगोष्ठी मे विद्वानो ने अपनी प्रखर मेधा के साथ शोधपत्रो का वाचन व विमर्श मे जिस उत्साह एव गौरव के साथ सहभागिता दिखाई थी, उसी का परिणाम है कि यह स्मारिका इस रवरूप को प्राप्त हुई। हम आठात विद्वज्जन के प्रति हार्दिक साधुवाद ज्ञापित करना चाहते है । साथ ही सतना के विभिन्न सयोजको के प्रति भी आभार प्रकट करना कर्तव्य है, जिनके कि समाचारपरक आलेख इस स्मारिका में स्थान पा सके। इस स्मारिका में जो कुछ भी अच्छा है वह मुनिश्री प्रमाणसागर जी की कृपा.व अनुकम्पा है और जो त्रुटिपूर्ण रह गया, वह सम्पादकों की अल्पज्ञता है। इस भावना के साथ मुनिश्री के चरणों में सविनये नमोऽस्तु। #. राकेश मीन एवं प्राचार्य निहालचन्द जैन
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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