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________________ सम्पादक की कलम से... जैनागम में संस्कृत - सूत्रों में निबद्ध 'तत्त्वार्थसूत्र' अपर नाम मोक्षशास्त्र ग्रन्थ के कत्ती आचार्य उमास्वामी हैं, जिन्हें दिगम्बर परम्परा में गृब्दपिच्छाचार्य के नाम से भी जाना जाता है। तत्त्वार्थ सूत्रकर्त्तारं गृध्रपिच्छोपलक्षितं । यह जैनदर्शन का प्रथम संस्कृत भाषा का आगम ग्रन्थ है, जिसमें चारों अनुयोग समाहित हैं। भक्तामरस्तोत्र के साथ श्रावकजन इसका नित्य पाठ करते हैं। इससे इसकी जैन वाड्मय में महत्ता का पता चलता है। ये दोनों, दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय में समान रूप से प्रचलित हैं। इस ग्रन्थ के दस अध्यायों में जीवादि सात तत्त्वों का वर्णन 357 सूत्रों में निबद्ध है। इसकी पूर्वाचार्यों ने कई टीकाएँ लिखी, जिसमें आचार्य पूज्यपाद की 'सर्वार्थसिद्धि' टीका काफी विख्यात एव प्राचीन है । पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी जैनदर्शन के मर्मज्ञ सत हैं। सन् 2000 में आपके सान्निध्य में टी टी नगर भोपाल मे भक्तामरस्तोत्र पर एक राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। इससे प्रेरित होकर आपके आशीर्वाद से जैन समाज फिरोजाबाद ने वर्षायोग 2003 में तत्त्वार्थसूत्र पर एक विद्वत्सगोष्टी का गौरवपूर्ण आयोजन विद्वत्प्रवर प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी के निर्देशन में सम्पन्न कराया। उस संगोष्टी से यह बात खुलासा हुई कि इस ग्रन्थ में इतने सारे विषय है कि उन्हें एक सगोष्टी में समेट पाना सम्भव नहीं है, अस्तु सतना के वर्षायोग 2004 में आपका आशीर्वाद प्राप्तकर दिगम्बर जैन समाज सतना ने इस कार्य को और आगे बढ़ाया तथा एक वृहद् राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन 4 से 6 सितम्बर 04 में किया गया। जिसका उत्तरदायित्व वर्षायोग समिति के दो पदाधिकारियों ने विशेष रूप से लिया, जो विद्वान और आगमचिन्तक मनीषी हैं। वे हैं - 1. प. सिद्धार्थकुमार जैन, सुपुत्र विद्वत्प्रवर प. जगन्मोहनलाल शास्त्री एवं 2. सिं. भाई जयकुमार जी आप समाज में यशः प्रतिष्ठित एवं मौलिक चिन्तन के धनी हैं। उक्त दोनों के कुशल निर्देशन में देश के लगभग 30 मूर्धन्य विद्वानों ने संगोष्टी में अपनी उपस्थिति और सहभागिता की तथा तत्त्वार्थसूत्र के विभिन्न अध्यायों से सम्बद्ध शोधालेखों की प्रस्तुतियाँ दी। जिससे ग्रन्थ की लोकोपयोगिता विभिन्न आयामों पर -
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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