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259/सत्कार्थसून- निकष
रामायण - गीता ज्ञानवर्षा
संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अग्रिम पंक्ति के वरेण्य प्रिय शिष्य अध्यात्म एवं राष्ट्रीय चेतना के प्रवक्ता मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज का वर्षायोग 2004 की स्थापना जब से सतना में हुई, धर्मप्रभावना की अद्भुत लहर एवं धर्म-ज्ञानामृत की वर्षा प्रवाहमान है। इस जैन संत के कंठ में मानो सरस्वती अधिष्ठित है, तभी तो आपकी वाग्मिता और प्रवचन कला से अभिभूत होकर भारत विकास परिषद् के कार्यकत्ताओं एवं आयोजकों ने जैन समाज को ही नहीं, बल्कि जनमानस को अपने आशीर्वाद का सौरभ बिखेरने के लिये मुनिश्री से प्रार्थना की, और इसकी फलश्रुति एक पंचदिवसीय महोत्सव 'रामायण- गीता ज्ञानवर्षा' के रूप में सतना नगरी को प्राप्त हुई। भारत विकास परिषद् के तत्त्वावधान में एक समिति का गठन करके सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि ऐसे दिगम्बर जैन संत के अगाध ज्ञान की गंगा के आचमन का लाभ सतना नगर के जन-जन को मिले। पूज्य मुनि श्री से कार्यक्रम की स्वीकृति लेकर समिति के समन्वयक श्री उत्तम बनर्जी, अध्यक्ष श्री चरणजीतसिंह पुरी, कार्यक्रम संयोजक श्री योगेश ताम्रकार एवं सह संयोजक श्री जीतेन्द्र जैन (जीतू) ने बड़ी दूरदर्शिता, सुदृढ प्रचारतन्त्र एवं पेम्पलेट, होर्डिंग्स आदि के माध्यम से रामायण एवं गीता का आध्यात्मिक रहस्य उद्घाटित करने की इच्छा, संकल्प से युक्त रामायण गीता ज्ञान वर्षा का कार्यक्रम संयोजित किया, जिसने सतना में एक अपूर्व इतिहास रच डाला
28 अक्टूबर से 1 नवम्बर 2004 तक सी. एम. ए. स्कूल के विशाल परिसर में 40 हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में एक भव्य, महावीर मंडप का निर्माण किया गया। इस कार्यक्रम की अद्भुत सफलता ने पुराने सारे कीर्तिमान खारिज करते हुये 20-20 हजार की सतना के उमड़ते जन सैलाब ने मुनि श्री को कानों से ही नहीं प्राणों से सुना। मैं तो कहना चाहूंगा कि कलेक्टर से लेकर कहारिन तक, गरीब से लेकर श्रेष्ठ धनपतियों, प्रबुद्ध श्रोताओं, उद्योगपतियों ने मुनि श्री के प्रवचनों को सुनकर 'न भूतो न भविष्यति' की प्रतिक्रिया द्वारा जो उल्लास और हर्ष व्यक्त किया वह उनके चेहरों से झांक रहा था । दिगम्बर जैन मुनि के लिये एक जैनेतर सर्वसमाज की इतनी भक्ति, श्रद्धा और समर्पण देखकर सम्पूर्ण जैन समाज सतना मस्तक गर्व से उन्नत हो गया है। धर्म सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सद्भाव की अनोखी मिसाल और ज्ञान ज्योति की मशाल का यह महायज्ञ देखने लायक था। जो जन-जन की चर्चा का विषय बना
रहा।
कार्यक्रम के प्रथम दो दिवस रामायण पर एक नयी आध्यात्मिक दृष्टि से मुनि प्रमाणसागर जी के मंगल प्रवचन हुये। मुनि श्री ने रामायण के प्रत्येक पात्र के प्रतीकात्मक आध्यात्मिक अर्थ द्वारा यह सिद्ध किया कि रामायण हम सभी के जीवन की अन्तर्घटना है। राम को चौबीस तीर्थंकर की व्याप्ति से समाहित कर कहा कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का 'रा' और अन्तिम तीर्थंकर महावीर के 'म' से 'राम' सृजित हुये हैं। भरत ज्ञान वैराग्य, लक्ष्मण