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________________ है।सवार्यसूच' मेंएकसूत्र माया है- "माम्लेिच्छो दो प्रकार के मनुष्यों की कोटिला एक आर्य और दूसरे म्लेच्छ । जो अपने गुण-कर्म से श्रेष्ठ हैं वे आर्य हैं और जो गुण कर्म से हीन आचरण वाले हैं लेना है।यहाँ आर्य जीवन ही जीवन मूल्यों से समन्वित जीवन माना जा सकता है। ऐसा प्रशस्त आचरण ही पुण्यकर्म है और अप्रशस्त आवरण से पाप का आसव होता है - "अमः पुष्पस्यामा पागल" तत्वार्थसूत्र में आपत प्रमुख जीवास मूल्य इस ___तत्त्वार्थसूत्र" के अनुसार - "परस्परोपग्रहो जीवानाम्' अर्थात् जीव परस्पर उपकार करते हैं। यद्यपि यह जीवद्रव्य के प्रसंग में है, किन्त भद्र अकालकदेव ने 'तत्त्वार्थवार्तिक' में लिखा है कि "परस्पर शब्द कर्म व्यतिहार अर्थात क्रिया के आदान-प्रदान को कहता है। स्वामी-सेवक, गुरु-शिष्य आदि रूप से व्यवहार परस्परोपग्रह है। स्वामी रूपया देकर तथा सेवक हितप्रतिपादन और महितप्रतिषेध के द्वारा परस्पर उपकार करते हैं। गुरु उभयलोक का हितकारी मार्ग विखाकर तथा आचरण कराके भौर शिष्य गुरु की अनुकूलवृत्ति से परस्पर के उपकार मे प्रवृत्त होते है । स्वोपकार और परोपकार को अनुग्रह कहते हैं। पुण्य का सचय स्वोपकार है और पात्र की सम्यग्ज्ञान आदि की वृद्धि परोपकार है।"५ जिनके मन में परस्पर अनुग्रह की भावना नही है वे 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना से कोसो दूर है। 'हितोपदेश' में आया है कि - अब निजः परो वेति गणना लपुणेतसाम् । ___ उदारचरितानां तु बसुमैव कुटुम्बकम् ॥ अर्थात् यह मेरा है, यह उसका है, ऐसा सकीर्ण दृष्टिकोण वाले लोग सोचते है । उदारचरित कालो के लिए तो पूरा विश्व ही एक परिवार है। - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने इस वैश्विक जीवनमूल्य के प्रति बदलते सोच एवं व्यवहार को इस रूप में वर्णित किया है 'वसुधैव कुटुम्बकम्' इसका आधुनिकीकरण हुआ है वसु यानी धन-द्रव्य धन ही कुटुम्ब बन गया है धन ही मुकुट बन गया है जीवन का। १. तस्वार्थसूत्र : भाचार्य उमास्वामी, 3/36 २. तत्त्वार्थसूत्र, 6/3 ३. वही, 5/21 ४. तत्वार्षवार्तिक, 5/21/1-2 ५. वही,1/38/ ६.हितोपदेश, ७.मूकमाटी, भाचार्य विद्यासागर, प.82 -
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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