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" पुद्गल - परमाणु में 2 प्रकार की गति पायी जाती है - 1. स्वत: गति - जैसे परमाणु में इलेक्ट्रॉन अपने परिपच में चक्कर लगाते रहते हैं या हवा में गैस के सूक्ष्म-स्कन्ध । 2. बाह्य बल द्वारा गति होना या अन्य पुद्गल के निमित्त से होने वाली गति । जैसे परमाणु का तरंग रूप में कम्पन या परिस्पन्दन। स्वत: गति अनुश्रेणी रूप होती है, जबकि अन्य पुनल के निमित्त से होने वाली मति -विश्रेणी (वक्ररेखी) हो सकती है।
शरीरवाङ्मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥ 5-19 ॥ पुद्गल स्कन्धों के सामान्यत: 23 भेद हैं। जिनमें 5 भेद ऐसे हैं जो जीव के ग्रहण करने में आते हैं - 1. कार्माणवर्गणाजिनसे ज्ञानावरणादिक आठ कर्म बनते हैं। नोकर्मवर्गणाओं के अन्तर्गत आहारवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और तैजसवर्गणा आते हैं। आहारवर्गणा से औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर - संसारी जीव के होता है वचन या भाषावर्गणा द्वीन्द्रियादिक जीवों के, मनोवर्गणा संज्ञी जीवों के तथा प्राणापान - पर्याप्त जीवों में ही पाया जाता है। इसके अलावा - सुख में, दु:ख में, जीवन और मरण में पदगल द्रव्य निमित्त बनता है। ये सभी जीव द्रव्य के प्रति उसके उपकार
पुद्गल के रूप - पुद्गल को छह रूपों में विभाजित किया जा सकता है। मायके भेद -
1. स्थूल-स्थूल - जैसे ठोस पृथ्वी पाषाण आदि 2. स्थूल - जैसे द्रव - पानी, पिघला घी, दूध आदि 3. स्थूल-सूक्म - जैसे - ताप, प्रकाश, विद्युत या चुम्बकीय ऊर्जाए 4. सूक्ष्म-स्थूल - जैसे - गैस, हवा, हाइड्रोजन आदि 5. सूक्म - द्रव्य मन आदि 6. सूक्ष्म-सूक्ष्म - इलेक्ट्रॉन के पुंज, प्रोटॉन या न्यूट्रोन
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आधुनिक परमाणु के मूल कणों को इसमें लिया जा सकता है - जैसे उक्त वर्गीकरण पूर्णत: वैज्ञानिक सम्मत है। जैनदर्शन के अनुसार पदार्थ (Mauer) और ऊर्जा (Energy) पुदगल द्रव्य की दो विभिन्न अवस्थाएँ या पर्याप हैं। महान् बैज्ञानिक आइन्स्टीन ने एक गणितीय सूत्र द्वारा ऊर्जा - संहति समीकरण के नाम से इसे प्रतिपादित किया है। १, आहार ममगादो तिषिण सरीराणि होति उस्सासो। हिस्सासोविय तेजो वगणसंधाद तेजंग।
भासमणवागावो कमेण भासा मणं च कम्मादो। २. मधूल-धूल, धूल धूल-गृहमं च सुहम-धूलं च। सुहम बासहमे इदि धरादिये होवि छन्भेयं । नियमसार ॥