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करोडवाँ भाग) तथा भार 4640X10 है। जैनदर्शन में परमाणु को सर्वथा अविभाज्य और अन्तिम अंश माना है । आधुनिक विज्ञान में एक परमाणु में प्रोदान, इलेक्ट्रान और न्यूट्रान प्राथमिक कण हैं।
नदर्शन में वर्णित परमाणु इसे भी सूक्ष्म
परमाणु का अस्तित्व वास्तविक है । परन्तु वह इन्द्रियग्राह्य नहीं है। उसे अतीन्द्रियज्ञान (केवलज्ञान या परमावधिज्ञान) द्वारा ही प्रत्यक्ष रूप से जाना जा सकता है। 'अस्तित्व' - प्रत्येक द्रव्य का एक सामान्म गुण होता है । गुणपर्यबबद् द्रव्यम् 115-3811 द्रव्य-गुण और पर्यायों से युक्त होता है। प्रत्येक द्रव्य या पुद्गल परमाणु में अस्तित्व आदि छह सामान्य गुण, तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि आठ विशिष्ट गुण होते हैं। पर्याय अवस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित है। प्रत्येक परमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस, दो स्पर्श इस प्रकार पाँच मौलिक गुण अनिवार्यतः पाये जाते हैं। आठ स्पर्शो में स्निग्ध या रूक्ष में से एक, तथा शीत, उष्ण में से एक इस प्रकार 2 स्पर्श होते हैं।
स्कन्धनिर्माण - पुद्गल के गलन और मिलन स्वभाव के कारण स्कन्ध का निर्माण होता है। पचास्तिकाय में स्कन्ध के सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण गाथा है -
संधा व संधादेसा संधपदेसा या होति परमाणु । इति ते चतुब्विबप्पा, पुग्गलकाबा मुणेबच्या ॥
अर्थात् पुद्गल चार रूपों में पाया जाता है - 1. स्कन्ध, 2. स्कन्धदेश, 3. स्कन्धप्रदेश, और 4. परमाणु। किसी पुद्गल का एक पूर्ण अणु स्कन्ध कहलाता है। उसका आधा स्कन्धदेश, आधे का आधा स्कन्धप्रदेश तथा जिसका फिर विभाजन न हो सके ऐसा स्कन्ध परमाणु कहलाता है ।'
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स्कन्ध की रचना 'भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते' अर्थात् भेद से ( Division ) संघात से (Union or Sharing ) तथा भेदसंघात से स्कन्ध की रचना होती है।
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विज्ञान की शाखा भौतिक रसायन (Physical Chemistry) मे 'इलेक्ट्रानिक थ्योरी ऑफ वेलेन्सी' स्कन्ध निर्माण की सन्तोषजनक व्याख्या प्रस्तुत करता है । 'संधो परमाणु संगसंवादो' । स्थूलभावेन ग्रहणनिक्षेपणादिव्यापारस्कन्धनात्स्कन्धा इति संज्ञायन्ते । अर्थात् स्कन्ध संघात और भेद की प्रक्रिया से प्राप्त होते हैं। स्कन्ध दो प्रकार के होते हैं -1 सूक्ष्म और 2. बादर (स्थूल) ।
१. बंसल समत्वं तस्स व बद्धं भणति देसोति ।
अयं च पवेसो, अविभागी चैव परमाणु ॥ गो. सा. 60411
परमाणु की गतिशीलता इस सम्बन्ध में गोम्मटसार में एक बहुत वैज्ञानिक सम्मत पुद्गल की विशेषता के सम्बन्ध में गाथा का उल्लेख है - पोम्बलदव्यम्हि अणू संवेज्जादी हवंति पर हु ॥ गो. सा. 593 11 तत्वार्थ राजवार्तिक में भी पुद्गल - गति के सम्बन्ध में वार्तिक 16 सूत्र 7 में वर्णित है- 'पुदमनानामपि द्विविधा क्रिया fureretofafter च ।'