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10. सूर्य-प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 8 मिनट लगते हैं। 11. सूर्य एक तारा है, पृथ्वी एक ग्रह है। 12. पृथ्वी सूर्य प्रकाश से प्रकाशित होती है। 13. सूर्य का पदार्थ बहुत हल्का है। 14. सूर्य गैसरूप है जबकि पृथ्वी ठोस है। 15. सूर्य का भ्रमण बहुत धीमा है, जबकि पृथ्वी धुरी पर बड़े वेग से घूम रही है। सौर परिवार का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रह पृथ्वी है, क्योंकि बुद्धि युक्त मानव जीवन इसी पर पाया जाता है। अन्य
अस्तित्व भी इसी पर है। गेंद के आकार का ठोस पिण्ड है, जो धुवों पर कुछ चपटा है। शुक्र और मंगल का एक चक्कर लगा लेती है। पृथ्वी की दैनिक गति और वार्षिक गति के फल स्वरूप ही रात-दिन और ऋतुपरिवर्तन होते हैं। इसके चारों ओर वायुमण्डल है। जिसमें अनेक गैसें हैं। भारी गैसें नीचे की ओर और हल्की गैसें ऊपर की ओर हैं। जलवाष्प का अस्तित्व भी वायुमण्डल में पाया जाता है।
इसी पृथ्वी ग्रह पर ही एशिया, यूरोप, आफ्रीका, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका - ये 6 महाद्वीप तथा आम्ध, प्रशान्त, हिन्द, उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव महासागरों का विस्तार है। धरातल विषम हैं। कहीं पर्वत, हिमशिखर, पठार, मैदान मरूस्थल और सघन बन हैं, तो कहीं अथाह महासागर, सागर, झीलें और छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। नानाविध बनस्पति और नानारंग-रूप, प्रकृति तथा भौगोलिक पर्यावरण के अनुसार क्रिया-कलापों में सलग्न हैं। यही दृश्यमान जगत ही आज का विश्व है । आधुनिक भूगोल में इसी का वर्णन है।
और भूगोल - अनन्त आकाश के मध्य लोक की स्थिति को स्पष्ट करते हुए लोक के आकार, विस्तार, क्षेत्रफल, विभाग आदि का विशद विवेचन है। यह लोक जीवादि छह द्रव्यों से परिव्याप्त है, जितने आकाश में छहों द्रव्य हैं, वही लोक है। यह लोक अनादि है, अनिधन, अकृत्रिम है। यह किसी के द्वारा बनाया नहीं गया और न ही किसी के द्वारा संचालित या नाश को प्राप्त होता है।
अनन्त अलोकाकाश के बीचों-बीच निराधार सीके की तरह लोक की स्थिति है । दोनों पैर फैलाकर कमर पर हाथ रखे पुरुष के आकार के समान लोक का आकार है। यह सम्पूर्ण लोक ऊपर-नीचे 14 राजू ऊँचा है। यह तीन भागों में विभक्त है-ऊर्य, मध्यम और अधोलोक । इसे घनोदधिवातवलय, धनवातबलय और तनुवातवलय इस प्रकार घेरे हैं कि जैसे वृक्ष छाल से घिरा होता है। इनमें अधोलोक वेत्रासन, मध्यमलोक थाली व ऊर्ध्वलोक मृदंग के आकार जैसा है। इसका घनफल 343 पमराजू है।
लोक की चौड़ाई नरकों के नीचे पूर्व-पश्चिम सात राजू है। ऊपर क्रम से घटकर सात राजू की ऊंचाई पर मध्यम लोक में एक राजूही चौड़ा है। इसके ऊपर फैलता हुमा यह लोक साढे बस राजू की ऊँचाई पर ब्रह्मलोक स्वर्ग के अन्त में इसकी चौड़ाई पाँच राजू एवं फिर घटते हुए सिद्धालय के ऊपर एक राजू मात्र है। उत्तर दक्षिण सर्वक साल राजू मोटा है नीचे कपर लोक की ऊंचाई चौवह राजू है । इसमें जीवादि छहों द्रव्य है तथा इसके अन्यात प्रदेशा है।