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________________ पिण्ड भी दार्थ हैं। सभी केवलौगम्य हैं। ध्यानस्थ श्रमण संस्थानविषय धर्मध्यान में इनके स्वरूप, विस्तार आदि के विषय में चिन्तयन किया करते हैं। यो मान्यताएं - भूगोल-खगोल विषय में दो प्रमुख मान्यताएँ वर्तमान में प्रचलित हैं - क, भाधुनिक मान्यता और ख. प्राचीन क.बाधनिक मान्यता - आधुनिक भूगोल का समावेश होता है, जिसे आज के वैज्ञानिकों ने बाहा परिदृश्य का निरीक्षण, परीक्षण और विश्लेषण कर प्रयोगों के आधार पर प्रमाणित किया है और जिसके आधार पर आधुनिक विश्व के सभी कार्य-कलाप (समय-निर्धारण, सभी आर्थिक व्यापारिक क्रियाएँ, यातायात-परिवहन, दूरदर्शन, दूरसंचार, उपग्रहप्रक्षेपण आदि) संचालित हैं। ब. प्राचीन मान्यता - इसमें भूगोल-खगोल का वह परिदृश्य है, जिसे हमारे आचार्यों भगवन्तों ने सर्वशदेव की दिव्यध्वनि के अनुसार वाङ्मय में लिपिबद्ध किया है। जैनागम के करणानुयोग प्रतिपादक शास्त्रों में/पुराणों में हमें इसके रूप-स्वरूप सुनने-पढ़ने को मिलते हैं। यही जैन भूगोल है। इसमें त्रिलोक का सविस्तार वर्णन है। त्रिलोक की स्थितिविस्तार, विभाग, क्षेत्रफल, धनफल, स्वर्ग-नरक, द्वीप-समुद्र, कुलाचल, पर्वत, नदियाँ, कृत्रिमाकृत्रिम रचनाएँ, कालपरिवर्तन, तदनुसार देव-नारकियों और भोगभूमिज कर्मभूमिज /कुभोगभूमिज मनुष्य-तिर्यंचों का पर्यावरण अनुसार क्रियाकलाप आदि का वर्णन इसका प्रतिपाद्य है। इनके चर-अचर ज्योतिष्क देवों का वर्णन भी इसी का खगोलीय विवेचन प्रस्तुत करता है । अस्तु, जैन भूगोल-खगोल का क्षेत्र/विषय बहुत व्यापक है, हृदयावर्जक और विस्मयकारी है। माधुनिक भूगोल - आधुनिक भूगोल सौर्यमण्डल को लेकर सृष्टि की विवेचना करता है। एक सूर्य और उसके ग्रहों, उपग्रहों, क्षुद्र ग्रहो, पुच्छल ताराओं और उल्काओं के समूह को और सौर-परिवार या मौर्यमण्डल कहते हैं। प्रत्येक सौर्यमण्डल का केन्द्र सूर्य होता है। सभी ग्रह अपने-अपने उपग्रहों के साथ इसके चारो भोर चक्कर लगाते है। हमारे सौरपरिवार की उत्पत्ति 4.5 - 5 अरब वर्ष पूर्व हुई है। इसके अनुसार प्रमुख मान्यताएँ हैं - 1. ब्राह्मण्ड में सौर्यमण्डल का जनक सूर्य है। 2. इसके 9 ग्रह और 31 उपग्रह हैं। 3. सूर्य एक गरम गैसीय स्वत: प्रकाशित पिण्ड है। 4. प्राणमूलक ऊर्जा का उद्गम और अनन्तशक्ति का स्रोत भी यही है। 5. इसी से पृथ्वी को ताप व प्रकाश प्राप्त होते हैं। 6. पृथ्वी सूर्य के 9 ग्रहों में से एक है। 7. पृथ्वी के व्यास से सूर्य का व्यास 109 गुना बड़ा है। 8. यह पृथ्वी से 15 करो कि. मी. दूर है।। .. 9. इसकी बाहरी सतह का तोप 60 सल्सियस है। . .
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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