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बायोटेक्नालॉजी, जेनेटिक इंजीनियरी एवं जीवविज्ञान
स्वार्थानि / 173
वर्तमान युग विज्ञान का युग कहा जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में नित नये आविष्कार किये जा रहे हैं। इन आविष्कारों से एक ओर जहाँ जीवनयापन करने के साधन सुलभ बना दिये हैं वहीं दूसरी ओर अनेक कठिनाइयाँ भी उत्पन्न हो गई हैं। विज्ञान के आविष्कारों का वास्तविक लक्ष्य तो वास्तव में प्रकृति के रहस्यों एवं क्रियाकलापों के बारे मे विस्तृत जानकारी हासिल कर उन्हें मानव एवं अन्य प्राकृतिक अवयवों के लिये लाभ पहुंचाना ही है ।
* प्रो. डॉ. अशोक जैन,
विज्ञान की इन्हीं खोजों की श्रृंखला में सन् 1970-80 मे जीव विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी के बीच अन्तःसम्बन्ध से एक नई शाखा का जन्म हुआ। इस प्रकार जैवप्रौद्योगिकी (Biotechnology) विगत चार पाँच दशकों में विकमित जीवविज्ञान की नवीन लेकिन उपादेयता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शाखा है। जैव-प्रौद्योगिकी विशुद्ध प्राकृतिक विज्ञान न होकर विज्ञान की विभिन्न शाखाओं, उपशाखाओं का सम्मिलित समन्वयित विज्ञान है। आलेख के पश्च भाग मे बायोटेक्नालॉजी की व्याख्या तत्त्वार्थसूत्र के सन्दर्भ में की गई है।
जैवतकनीक की उपयोगिता -
वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में जैवतकनीकि (Biotechnology) का उपयोग विभिन्न कार्यों में किया जा रहा है। कुछ प्रमुख उपयोग निम्न हैं
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अ. किण्वन तकनीक (Fermentation Technology )
1. स्वास्थ्य : अनेक स्वास्थ्य रक्षक दवाओं, प्रतिजैविक (एण्टीबायोटिक्स), एन्जाइम, पॉलीसेकेराइडस, स्टीराइडस, एल्केललाइडस, इस तकनीक से निर्मित किये जा रहे हैं।
2. खाद्य एवं कृषि उद्योग : कई प्रकार के अम्लों के निर्माण, एन्जाइम्स एवं बायोपॉलीमर्स निर्माण में ।
3. कृषि विज्ञान : नई किस्मों के उत्पादन एवं कीटनाशक दवाओं के निर्माण में ।
ब.. एन्जाइमेटिक अभियांत्रिकी (Eneymatic Engineering)
प्राध्यापक, वनस्पतिविज्ञान विभाग, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर,
4. ऊर्जा : इथेनॉल, एसीटोन, ब्यूटेनॉल, बायोगैस आदि में ।
5. रासायनिक उद्योग : इर्थवॉल, इथाइलीन, एसीटेलिडहाइड, एसीटोन, ब्यूटेनोल आदि के उत्पादन में ।
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