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*52/जस्थान-निकाय
मूल नयों की संख्या के विषय में पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तमास्त्री ने लिखा है- 'बट्खयागम में नय के नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द इन पाँच भेदों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि कषायपाहुड में ये ही पाँच भेद निर्दिष्ट हैं लथापि वहाँ मैगम के संग्रहिक और असंग्रहिक ये दो भेद तथा तीन शब्द नय बतलाये हैं। श्वेताम्बर तत्वार्यभाध्य और माध्यमान्य सूत्रों की परम्परा कषायपाहुड की परम्परा का अनुकरण करती हुई प्रतीत होती है। उसमें भी नय के तीन भेद किये गये हैं। तत्त्वार्थभाष्य में जो नैगम के देशपरिक्षेपी और सर्वपरिक्षेपी ये दो भेद किये हैं सो वे कषायपाहुड में किये गये नैसम के संग्रहिक और असंग्रहिक इन दो भेदों के अनुरूप ही हैं। सिद्धसेन दिवाकर नैगमनय को नहीं मानते शेष छ: नयों को मानते हैं। इसके सिवा सब दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रन्थों में स्पष्टतः सूत्रोक्त सात नयों का ही उल्लेख मिलता है। इस प्रकार विवक्षा भेद से यद्यपि नयों की संख्या के विषय में अनेक परम्पराएँ मिलती हैं, तथापि वे परस्पर एक-दूसरे की पूरक हो
गत सातों मब दो नव रूप..., ग्रम आदि नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दो भागों में विभक्त हैं। आचार्य पूज्यपाद ने लिखा है - 'स देधा
यापिका-पर्यावार्षिक-श्चेति।"धवला में भी कहा गया है कि तीर्थंकरों के वचनों के सामान्य प्रस्तार का मूल व्याख्याता द्रव्यार्थिक नय है तथा उन्हीं वचनों के विशेष प्रस्तार का मूल व्याख्याता पर्यायार्थिक नय है। शेष सभी नय इन ोनों ही नयों के विकल्प या भेद हैं। भास्करनन्दि ने कहा है कि ये नैगमादि सातों नप ही दो नय रूप होते हैं। क्योंकि भूतज्ञान के द्वारा गृहीत वस्तु के अंश से द्रव्य और पर्याय जिसके द्वारा प्राप्त किये जाते हैं, वे नय हैं, इस तरह व्युत्पत्ति है। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ऐसे ये दो नय हैं। द्रव्य, सामान्य, अभेद, उत्सर्ग और अन्वय ये शब्द एकार्थवाची हैं। द्रव्य है प्रयोजन जिसका उसे द्रव्यार्थिक नय कहते हैं। द्रव्य विषय वाला द्रव्यार्थ नय है। पर्याय, विशेष, भेद, अपवाद, व्यतिरेक ये शब्द एकार्थवाची हैं। पर्याय है प्रयोजन जिसका उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं। अथवा पर्याय विषय वाला पर्यायार्थ है। इनके द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक नाम भी हैं। द्रव्य के अस्तित्व को स्वीकार करे बह द्रव्य है। इस प्रकार की बुद्धि है जिसकी बहनय द्रव्यास्तिक है। पर्याय के अस्तित्व को स्वीकार करे वह पर्याय है। इस प्रकार की बुद्धि है जिसकी वह पर्यायास्तिक है।
उक्त नैगमादि सात नयों में नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन द्रव्यार्थिक नय के भेद हैं तथा ऋजुसूत्र आदि शेष बार पर्यायार्थिक नय के भेद हैं। नैगमनय यद्यपि द्रव्य और पर्याय दोनों को मुख्य-गौण भाव से ग्रहण करता है। फिर भी वह इनको उपचार से ग्रहण करता है, अत: वह द्रव्यार्थिक नय का भेद है । सग्रह नय तो द्रव्यार्थिक है ही। व्यवहारनय के विषय में ऊर्ध्वता सामान्य से भेद नहीं किया जाता है, इसलिए इसे भी द्रव्यार्थिक नय ही माना जाता है। आगे के चार नय पर्यायार्षिक हैं। ऋजुसूत्र नय तो पर्याय विशेष को ग्रहण करता ही है, शेष तीन भी पर्याय को ही विषय बनाते हैं। मत: इन्हें पर्यायार्षिक माना गया है।
। उक्त समी नय यद्यपि अपने-अपने विषय को ही ग्रहण करते हैं किन्तु मख्य-गौण भाव से परस्पर सापेक्ष रहते
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वायसन/की हिन्दी व्याख्या