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जैन पूजा पाठ सप्रह
स्वयंभू स्तोत्र भाषा
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राजविषै जुगलनि सुख कियो, राज त्याग भवि शिव पद लियो । स्वयंवोध स्वयंभू भगवान, चंदौं आदिनाथ गुणखान ॥ १ ॥ इन्द्र क्षीरसागर जल लाय, मेरु न्हवाये गाय बजाय । मदन- विनाशक सुख करतार, चंदौं अजित अजित पदकार ॥ २ ॥ शुक्लध्यान करि करम विनाशि, घाति अघाति सकल दुखराशि | लह्यो मुकतिपद सुख अधिकार, वदौं सम्भव भव दुखटार || ३ || माता पच्छिम रयन मंझार, सुपने सोलह देखे सार । भूप पूछि फल सुनि हरपाय, वदौं अभिनन्दन मनलाय ॥ ४ ॥ सब कुवाद वादी सरदार, जीते स्यादवाद-धुमि धार । जैन-धरम - परकाशक स्वाम, सुमतिदेव पद करहु प्रणाम ॥ ५ ॥ गर्भ अगाऊ धनपति आय, करी नगर-शोभा अधिकाय । बरसे रतन पंचदश मास, नमों पदमप्रभु सुखकी रास ॥ ६ ॥ इन्द्र फनिन्द्र नरिंद्र त्रिकाल, बाणी सुनि सुनि होहिं खुस्याल | द्वादश सभा ज्ञान-दातार, नमों सुपारसनाथ निहार ॥ ७ ॥ सगुन छियालिस हैं तुम माहि दोष अठारह कोऊ नाहिं । मोह महातम - नाशक दीप, नमों चन्द्रप्रभ राख समीप ॥ ८ ॥ द्वादश विधितप करम विनाश, तेरह भेद रचित परकाश । निज अनिच्छ भवि इच्छक दान, वदौं पुहुपदत मन आन || ६ | भवि-सुखदाय सुरगर्ते आय. दश विधि धरम को जिनराय ।
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