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जैन पूजा पाठ सप्रह
आप समान सबनि सुखदेह, वन्दौं शीतल धर्म-सनेह ॥१०॥ समता-सुधा कोप-विष - नाश, द्वादशांगवानी परकाश । चार सघ-आनन्द-दातार, नमों श्रेयास जिनेश्वर सार ।।११।। रतनत्रय शिर मुकुट विशाल, शोभै कण्ठ सुगुण मणिमाल । युक्ति-नार-भरता भगवान, वासुपूज्य वन्दी धर ध्यान ॥१२॥ परम समाधि स्वरूप जिनेश, ज्ञानी ध्यानी हित-उपदेश । कर्मनाशि शिव-सुस-विलसन्त, बन्दी विमलनाथ भगवत ॥१३॥ अन्तर बाहिर परिग्रह डारि, परम दिगम्बर-व्रतको धारि । सर्व जीव-हित-राह दिखाय. नमों अनन्त वचन मन लाय ॥१४॥ सात तत्त्व पचासतिकाय, अरथ नवों छ दरव बहु भाय । लोक अलोक सकल परकारा, बन्दो धर्मनाथ अविनाश ॥१शा पंचम चक्रवर्ति निधिभोग, कामदेव द्वादशम मनोग। शांतिकरन सोलम जिनराय, शांति नाथ चन्दौं हरपाय ॥१६॥ बहु थुति करै हरप नहि होय, निदे दोष गहै नहिं कोय । शीलवान परब्रह्मस्वरूप, बन्दो कुन्थुनाथ शिव - भूप ॥१७॥ द्वादशगण पूजे सुखदाय, थुति वन्दना करें अधिकाय । जाकी निज-थुति कबहुँ न होय, वदौं अर-जिनवर-पद दोय ॥१८॥ पर-भव रतनत्रय-अनुराग, इह-भव व्याह-समय वैराग। बाल-बम - पूरन - व्रतधार, चन्दौं मल्लिनाथ जिनसार ॥१६॥ विन उपदेश स्वयं वैराग, थुति लौकान्त करें पगलाग । नमःसिद्ध कहि सब व्रत लेहि, वन्दौं मुनिसुव्रत व्रत देहिं ॥२०॥