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मन पसंद
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धारक विद्यावंत निहार, भगति-भावसों दियो अहार । बग्मी रतन-रागि नामाल, बन्दी नमिप्रभु दीन-दयाल ॥२१॥ सब जीवनसी बन्दी डोर, राग-देष द्ववन्धन तोर । रजमति तजि गिय-निया मिले, नेमिनाथ चंदी सुग निलं ॥२२॥ दन्य नियी उपमर्ग अपार, ध्यान देसि आयो फनिधार । गयो कमठ गट मुवकर श्याम, नमो मेरुमम पारसस्त्राम ॥२३॥ भव-गागन्तै जीय अपार, धरम-पातमे धरे निहार । इयत काटे दया रिचार, बर्द्धमान बन्दों यापार ॥२४॥ दोहा-चौवीसी पद कमल जुग, बंदों मन वच काय।
'द्यानत' पढ़े सुन सदा, सो प्रभु क्यों न सहाय ॥
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मोक्षमार्ग
.LTE ने गुगार लोर मोटर पाने दो में गो, महा सपान तुम्हें
मिद - १६ का देगा। * मास - मार्ग पर में नदी, मजिद में नदी, गिरजाघर में नही, पी पदार भोर तोराज में नदी-दफा उदय तो मारमा में है।
-'पणी पाणी' से