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जैन पूजा पाठ समह
नेवज विविध प्रकार, क्षुधा हरै थिरता करे ॥ स०॥५॥ ॐ ह्रीं अष्टविध सम्यग्ज्ञानाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥
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दीप-जोति तम- हार, घटपट परकाशै महा ॥ स० ॥६॥
ॐ ही अष्टविध सम्यग्ज्ञानाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
धूप धान- सुखकार, रोग विघन जड़ता हरै ॥ स०॥७॥
ॐ ह्री अष्टविध सम्यग्ज्ञानाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
श्रीफलआदि विधार, निहचे सुर - शिव - फल करें ॥स०|८|
ॐ ह्रीं अष्टविध सम्यग्ज्ञानाय फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥
जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फलफूल वरु ॥स०॥६॥
ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
जयमाला दोहा
आप आप जानै नियतः ग्रन्थपठन व्योहार । संशय विभ्रम मोह बिन, अष्ट अङ्ग गुनकार ॥ १ ॥ सम्यकज्ञान-रतन मन भाया, आगम तीजा नैन बताया । अच्छर शुद्ध अरथ पहिचानौ, अच्छर अरथ उभय सँग जानौ ॥ जानौ सुकाल-पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाये । तप - रीति गहि वहु सौन देकें, विनयगुन चित लाइये || ये आठ भेद करम उछेदक, ज्ञान दर्पन देखना | इस ज्ञानहीसों भरत सीझा, और सब पट पेखना ॥११॥ ही अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पूर्णाघ' निर्वपामीति स्वाहा ॥ ११ ॥