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जैन पूजा पाठ सप्रह
सम्यक्चारित्र पूजा दोहा-विषय रोग औषधि महा, देवकषाय जलधार ।
तीर्थकर जाकों धरै, सम्यकचारितसार ॥ १॥ - ही त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ॐ ही त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ हीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट ।
सोरठा। नीर सुगन्ध अपार, त्रिषा हरै मल छय करै। सम्यकचारित सार, तेरह विध पूजौं सदा ॥ १ ॥ ॐ ही प्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जल ० ॥ १ ॥ जलकेशर घनसार, ताप हरे शीतल करें। ल० ॥२॥ ॐ ह्री प्रयोदशविधसम्यचारित्राय ससारतापविनाशनाय चन्दनम् ॥ २ ॥ अछत अनूप निहार दारिद नाशै सुख भरै । स० ॥३॥ ॐ हीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् ॥ ३ ॥ पुहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करै। स०॥४॥ ॐ हीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय कामवाणविध्वसनाय पुष्प० ॥ ४ ॥ नेवज विवध प्रकार, क्षुधा हरै थिरता करै । स०॥५॥
ही त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य • ॥ ५॥ दीप-जोति तम-हार, घट पट परकाशै महा । स०॥६॥ ॐही त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीप ॥ ६ ॥