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न पूजा पाठ सप्रह
अछत अनूप निहार, दारिद नाशै सुख भरै ॥ सम्यक ॐ हीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय अक्षत निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ पुहुप सुवास उदार, खेद हरे मन शुचि करे । सम्या ॐ हीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ नेवज विविध प्रकार, क्षुधा हरै थिरता करै ॥ सम्यक ॐ हीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ दीप-ज्योति तम-हार, घट पट परकाशै महा ॥ सम्म ॐ ही अष्टांगसम्यग्दर्शनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ धूप घान-सुखकार, रोग विघन जड़ता हरै ॥ सस्य ॐ ही अष्टांगमम्यग्दर्शनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर-शिव-फल करै॥ सम्यक ॐ ही अष्टागसम्यग्दर्शनाय फल निवपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल-फूल चरु ॥ सम्यक ॐ ही अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अब निर्वपामीति स्वाहा ॥९॥
जयमाला दोहा। आप आप निहचै लखै तत्व-प्रीति व्योहार । रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्ट गुनसार ॥१॥
चौपाई मिश्रित गीता छन्द । सम्यकदरशन-रतन गहीजै। जिन-बचमें सन्देह न कीजै। इह भव विभव-चाह दुखदानी । पर-भव भोग चहै मत प्रानी ।।