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जैन पूजा पाठ सप्रद
धूप सुवास विथार, चंदन अगर कपूर
की ॥ जन्म०
ॐ ह्रीँ सम्यन्त्नत्रयाय मोहान्धकार विनागनाय दीप निपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
फल शोभा अधिकार, लोंग छुहारे जायफल || जन्स०
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ॐ ह्रीं सम्यत्र्रनत्रवाय नोलपट प्राप्तये फल ॥ ८ ॥
आठ दरव निरधार, उत्तमलों उत्तम लिये || जन्म०
ॐ ह्रीं सन्चकुरनत्रयाय अनपदप्राप्तये अ० ॥ ९ ॥
सम्यक दरशन ज्ञान, व्रत शिवमय तीनों मयी । 'धानत' पूजों व्रतसहित ॥१०॥
पार उतारन यान,
ॐ ह्रीं सम्यत्नत्रयाय पूर्णां
निर्वपामीति स्वाहा ।
सम्यग्दर्शन पूजा
दोहा - सिद्ध अष्ट-गुनमय प्रगट, मुक्त जीव-सोपान | ज्ञान चरित जिहैं बिन अफल, सम्यक्दर्श प्रधान ॥ १ ॥
ॐ हो अष्टागसम्यग्दर्शन ! भत्र भक्तर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ |
ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शन । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
सोरठा-नीर सुगन्ध अपार, शिवा हरै मल छय करै । सम्यकदर्शन सार, आठ अङ्ग पूजौं सदा ॥ २ ॥
ॐ ह्रीं अष्टागतम्यग्दर्शनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
जल केशर घनसार, ताप हरै शीतल करै ॥ सम्य०
ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥