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जैन पूजा पाठ सग्रह
दोनों संभारै कूप - जलसम, दरव घरमें परिनया ।
निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया वह गया। पनि साध शास्त्र अभय-दिबया, त्याग राग विरोधकों।
बिन दान श्रावक साधु दोनों, लहैं नाहीं वोधकों ॥८॥ ॐ ही उत्तम त्याग धर्माशाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। परिग्रह चौबिस भेद, त्याग करैं सुनिराजजी। तिसनाभाव उछेद, घटती जान घटाइए ॥६॥ उचम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह-चिन्ता दुख ही मानो।
फांस तनकसी तनमें सालै, चाह लंगोटी की दुख भाले । भाले न समता सुख कभी नर, बिना जुनि-मुद्रा धरै।
धनि नगनपर तन-नगन ठाड़े, सुर असुर पायनि परें । घरमांहि तिसना जो घटावै, रुचि नहीं संसारसौं।
बहु धन राहू मला कहिये, लीन पर-उपगारसौं ॥६॥ ॐ ही उत्तम आकिवन्य धर्मादाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। शील-बाडि लौ राख ब्रह्म-भाव अन्तर लखो। करि दोनों अभिलाख, करह सफल नर-भव सदा ॥१०॥ उत्तम ब्रह्मचर्य मन आनौ, माता बहिन सुता पहिचानौ।
सह वान-वर्षा वह सूरै, टिक न नैन-बान लखि करे॥ कूरे तिया के अशुचितनमें, कामरोगी रति करें।
बहु मृतक सड़हि मसान मांहीं, काक ज्यों घोंचें भरै ॥