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________________ 1 t ७४ जैन पूजा पाठ सप्रह संसार में विष बेल नारी, तजि गये जोगीश्वरा । 'द्यानत' धरम दशपैड़ चढिके, शिव-महल में पगधरा ||१०|| ॐ ह्रीं उत्तम ब्रह्मचर्य धर्माङ्गाय अनपद प्राप्ताय गर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला दोहा - दश लच्छन बंदों सदा, मनवांछित फलदाय । कहीं आरती भारती. हमपर होहु सहाय ||१|| । उत्तम छिमा जहाँ मन होई, अन्तर-बाहर शत्रु न कोई । उत्तम मार्दव विनय प्रकारों, नाना भेद ज्ञान सब भासे ॥ २ ॥ उत्तम आर्जव कपट मिटावे दुरगति त्यागि सुगति उपजावै । उत्तम सत्य वचन सुख बोलै, सो प्रानो संसार न डोलै ॥ ३ ॥ उत्तरा शौच लोभ- परिहारी, संतोषी गुण- रतन भण्डारी | उचम संयम पालै ज्ञाता, नर-भव सफल करै ले साता ॥ ४ ॥ उत्तम रूप निर्वाचित पालै, सो नर करम- शत्रुको टालें । उत्तम त्याग करें जो कोई, भोगभूमि- सुर- शिवसुख होई ॥ ५ ॥ उतम आकिंचन व्रत धारै, परम समाधि दशा बिसतारै । उचम ब्रह्मचर्य मन लावै, नरसुर सहित मुकति फल पावै ॥ ६ ॥ दोहा - करे करमकी निरजरा, भवपींजरा विनाशि | अजर अमर पदको लहै, 'द्यावत' सुखकी राशि ॥ ॐ ह्रीं उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, सयम, तप, त्याग, आकिंचन्य ब्रह्मचर्यधर्मेभ्य पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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