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जैन पूजा पाठ संग्रह
प्रथम सुदर्शन-स्वामि, विजय अचल मंदर कहा। विद्युन्माली नाम, पंचमेरु जगमें प्रगट ॥१॥
वेसरी छन्द। प्रथम सुदर्शन मेरु विराजे, भद्रशालवन भूपर छाजे चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन बन्दना हमारी ॥२॥ ऊपर पांच शतक पर सोहै, नंदनवन देखत मन मोहै ।। चैत्या०||३|| साढे बासठ सहस ऊंचाई, वनसुमनस शोभ अधिकाई ।। चैत्या०॥४॥ ऊँचा जोजन सहस छत्तीसं, पांडकवन सोहै गिरिसीसं । चैत्या०॥शा चारों मेरु समान बखानो, भूपर भद्रसाल चहुँ जानो। चैत्यालय सोलह सुखकारी, मन वच तन चंदना हमारी ॥६॥ ऊंचे पांच शतक पर भाखे, चारों नन्दनवन अभिलाखे। चैत्यालय सोलह सुखकारी, मनवचतन बदना हमारी ॥७॥ साढे पचपन सहस उतगा, वन सौमनस चार बहुरगा। चैत्यालय सोलह सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ||८|| उच्च अट्ठाइस सहस बताये, पांडुक चारों वन शुभ गाये। चैत्यालय सोलह सूखकारी, मन वच तन बन्दना हमारी ॥६॥ सुर नर चारन वन्दन आवै, सो शोभा हम किह सुख गायें । चैत्यालय अस्सी सुखकारी, मन वच तन वन्दना हमारी ॥१०॥ दोहा-पञ्चमेरुकी आरती पढ़े सुनै जो कोय। 'थानत' फल जानें प्रभू, तुरत महासुख होय ॥ ११ ॥ ॐ ही पचमेस्सम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनविम्बेभ्यो अर्ष निर्वपामीति स्वाहा। .