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जन पूजा पाठ सग्रह
सम्यक रन-त्रयनिधि दानी, लोकालोक प्रकाशकन्नानी।। शतइन्द्रनिकरि वंदित सोह, सुरनर पशु सबके मन मोहैं ।। ७ ।। दोहा-तुमको पूजै वंदना, करै धन्य नर सोय ।
___ 'धानत' सरधा सन धरै सो भी धरमी होय ।। ही विद्यमानविंशतितीभ्यो नहा निर्वगानिस्वाहा।
विद्यमान बीस तीर्थंकरोंका अर्घ उदकचंदनतंदुलपुष्पक श्चरसुदीपसुधूपफलार्घकः। धवलमङ्गलगानरवाकुले जिनगृहे जिनराजमहं यजे॥
ॐ ही श्रीसीमघर-युग्नघर-बाहुवाहु-जात-स्वयंन ऋष्मानन - नन्त-सूर्यम विशाललीदिवञ्चर चन्द्रानन वामपन-दर-नेनिस्वीरगनहाना- देवरगोजितवीति विगतिविद्यमानतीयरेन्योऽध निर्वपानीति स्वाहा ।
अकृत्रिम चैत्यालयों का अर्घ कृत्याकृत्रिम-चारु-चैत्यनिलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान । वंदे भावन-व्यंतरान् युतिवरान् स्वर्गामरावालगान् । सदगन्धाक्षत - पुष्प - दाम - चस्कैः सदीपधूपैः फलैद्रव्यैीरसुखैर्यजालि सततं दुष्कर्मणांशांतये ॥ १ ॥
सवैया सात किरोड़ बहत्तर लाख पताल विष जिन मन्दिर जानो। सध्यहि लोकमें चारसौ ठावन, व्यंतर ज्योतिष के अधिशालो ।।