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________________ जेन पूजा पाठ मद जल फल आठों दर्द, अरघ कर प्रीति धरी है । गणधर इन्द्रनहृतें, धुति पूरी न करी है ॥ 'थानत' सेवक जानके (हो) जगतैं लेहु निकार || सी० ॥ विद्यमानर्विनितीर्थं परे न्योऽनपदप्राप्तचे अपे० ।। ९ । ४१ जयमाला सोरठा - ज्ञान-सुधा-कर चंद, भविक खेतहित मेघ हो । भ्रम-तम भान अमंद, तीर्थकर वीसों नम ॥ चौपाई १६ मात्रा | मोमंधर सीमंधर स्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामी । बाहुबाहु जिन जगजन तारे, करम सुबाहु बाहुबल दारे ।। १ ।। जान सुजातं केवलज्ञान, स्वयंप्रभू प्रभु स्वय प्रधानं । पमानन ऋषभानन टोप, अनन्त चीरज वीरज कोपं ॥ २ ॥ सांगेप्रभ सौरीगुणमालं, मुगुण विशाल विशाल दयालं । वज्रधार व गिरिवज्जर है, चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं ॥ ३ ॥ भद्रबाहु भद्रनिके करता, श्री भुजंग भुजंगम भरता । ईश्वर सबके ईश्वर छाजें, नेमिप्रभु जस नेमि विराजै ॥ ४ ॥ वोग्सेन वीरं जगजाने, महाभद्र महाभद्र चखाने । नमो जमोधर जमधरकारी, नमो अजितवीरज चलधारी ॥ ५ ॥ धनुष पांचसं काय विराजे, आयु कोडि पूरब सब छाजै । समवशरण शोभित जिनराजा, भवजल तारन तरन जहाजा ॥ ६ ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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