SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तप-इच्छानिरोधको तप कहते है। जो व्यक्ति अपनी महत्त्वाकाक्षाओ और इच्छाओका नियन्त्रण करता है, वह तपका अभ्यासी है। वास्तवमे अनशन, ऊनोदर आदि तपोके अभ्याससे आत्मामे निर्मलता उत्पन्न होती है। अहकार और ममकारका त्याग भी तपके द्वारा ही सम्भव है। रत्नत्रयके अभ्यासी श्रावकको अपनी शक्तिके अनुसार प्रतिदिन तपका अभ्यास करना चाहिए। दान-शक्त्यनुसार प्रतिदिन दान देना चाहिए। सम्पत्तिकी सार्थकता दानमे ही है। दान सुपात्रको देनेसे अधिक फलवान होता है। यदि दानमे अहकारका भाव आ जाय तो दान निष्फल हो जाता है। श्रावक मुनि, आयिका, क्षुल्लिका, क्षुल्लक, ब्रह्मचारो, व्रती आदिको दान देकर शुभभावोका अर्जन करता है । बावकाचारके विकासको सोढियां श्रावक अपने आचारके विकासके हेतु मूलभूत व्रतोका पालन करता हुआ सम्यग्दर्शनको विशुद्धिके साथ चारित्रमे प्रवृत्त होता है। उसके इस चारित्रिक विकास या आध्यात्मिक उन्नतिके कुछ सोपान हैं जो शास्त्रीय भाषामे प्रतिमा या अभिग्रहविशेष कहे जाते हैं। वस्तुत ये प्रतिमाएँ श्रमणजीवनकी उपलब्धिका द्वार हैं। जो इन सोपानोका आरोहणकर उत्तरोत्तर अपने आचारका विकास करता जाता है वह श्रमणजीवनके निकट पहुँचनेका अधिकारी बन जाता है । ये सोपान या प्रतिमाएं ग्यारह हैं। १ दर्शनप्रतिमा-देव, शास्त्र और गुरुकी भक्ति द्वारा जिसने अपने श्रद्धानको दृढ और विशुद्ध कर लिया है और जो ससार-विषय एव भोगोसे विरक्त हो चला है वह निर्दोष अष्टमूलगुणोका पालन करता हुआ दर्शनप्रतिमाका धारी श्रावक कहलाता है । दार्शनिक श्रावक मद्य, मास, मधुका न तो स्वय सेवन करता है और न इन वस्तुओका व्यापार करता है, न दूसरोसे कराता है, न सम्मति ही देता है। मद्य-मासके सेवन करनेवाले व्यक्तियोसे अपना सम्पर्क भी नही रखता है। चर्मपात्रमे रखे हए घृत, तैल या जलका भी उपभोग नहीं करता। रात्रिभोजनका त्याग करनेके साथ जल छानकर पीता है और सप्तव्यसनोका त्यागी होता है । यह श्रावक नियन्त्रित रूपमे ही विषयभोगोका सेवन करता है। २ व्रतप्रतिमा-माया, मिथ्यात्व और निदान इन तीन शल्योसे रहित होकर निरतिचार पञ्चाणुव्रत और सप्तशीलोका धारण करनेवाला श्रावक प्रतिक या व्रतो कहलाता है। राग-द्वेष और मोहपर विजय प्राप्त करनेके तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना . ५२७
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy