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१. परविवाहकरण-जिनका विवाह करना अपने दायित्व अन्तर्गत नही है उनका विवाह सम्पादित कराना, परविवाहकरण है।
२. इत्वरिकापरिगृहीतागमन-जो स्त्रियाँ परदारकोटिमे नही आती, ऐसी स्त्रियोको धनादिका लालच देकर अपनी बना लेना अथवा जिनका पति जीवित है, किन्तु पुश्चली हैं उनका सेवन करना इत्वरिकापरिगृहीतागमन है। वस्तुत: यह अतिचार उसी समय अतिचारके रूपमे आता है जब व्रतका एकदेश भग होता है, अन्यथा व्रतभग माना जाता है।
३. इत्वरिकाअपरिग्रहीतागमन-जो स्त्री अपरिग्रहीता-अस्वीकृतपतिका है, उसके साथ अल्प कालके लिए कामभोगका सम्बन्ध स्थापित करना इत्त्वरिकाअपरिग्रहीतागमन है। वेश्या या अनाथ पुश्चली स्त्रीका नियत काल सेवन करनेमे यह अतिचार है। ___ ४ अनङ्गक्रीडा-कामसेवनके अतिरिक्त अन्य अङ्गोसे क्रीड़ा करना अनङ्गक्रीडा है।
४ कामतीव्राभिनिवेश-काम एव भोगरूप विषयोमें अत्यन्त आसक्ति रखना कामतीव्राभिनिवेश है।
ब्रह्मचर्याणुव्रतके धारोको स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग, स्त्रीमनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग, पूर्वरतानुस्मरणत्याग, वृष्य-इष्टरसत्याग और स्वशरीर-सस्कारत्याग करना भी आवश्यक है। परिग्रहपरिमाण-अणुव्रत
परिग्रह ससारका सबसे बड़ा पाप है। ससारके समक्ष जो जटिल समस्याएं आज उपस्थित है, सर्वव्यापी वर्गसंघर्षकी जो दावाग्नि प्रज्वलित हो रही है, वह सब परिग्रह-मूर्छाकी देन है। जब तक मनुष्यके जीवनमे अमर्यादित लोभ, लालच, तृष्णा, ममता या गृद्धि विद्यमान है, तब तक वह शान्तिलाभ नही कर सकता। श्रावक अपनी इच्छाओको नियन्त्रित कर परिग्रहका परिमाण ग्रहण करता है। ससारके धन, ऐश्वर्य आदिका नियमन कर लेना परिग्रहपरिमाणवत है। अपने योग-क्षेमके लायक भरणपोषणकी वस्तुमोको ग्रहण करना तथा परिश्रम कर जीवन यापन करना न्याय और अत्याचार द्वारा धनका सचय न करना परिग्रहपरिमाण है। धन, धान्य, रुपया, पैसा, सोना, चाँदी, स्त्री, पुत्र, गृह प्रभृति पदार्थोंमे ये मेरे है। इस प्रकारके ममत्वपरिणामको परिग्रह कहते है। इस ममत्व या लालसाको घटाकर उन वस्तुओको नियमित या कम करना परिग्रहपरिमाणवत है। इस व्रतका लक्ष्य समाजकी आर्थिक विषमताको दूर करना है । इस व्रतके निम्नलिखित पांच अतिचार हैं५२० तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा