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कमजोरीको छिपाना कमजोरी हे । जीवनमे अगणित कमजोरियां है और होती रहेगी, पर उनपर न तो पर्दा डालना और न उनके अनुसार प्रवृत्ति करना ही उचित है।
अचौर्याणुव्रतके पालनके लिए निम्नलिखित अतिचारोका त्याग भी अपेक्षित है
१ स्तेनप्रयोग-चोरी करनेके लिए किसीको स्वय प्रेरित करना, दूसरेसे प्रेरणा कराना या ऐसे कार्यमे सम्मति देना स्तेनप्रयोग है।
२ स्तेनाहत-अपनी प्रेरणा या सम्मतिके विना किसीके द्वारा चोरी करके लाये हुए द्रव्यको ले लेना स्तेनाहत है।
३ विरुद्धराज्यातिक्रम-राज्यमे विप्लव होनेपर होनाधिक मानसे वस्तुओका आदान-प्रदान करना विरुद्धराज्यातिक्रम है। राज्यके नियमोका अतिक्रमण कर जो अनुचित लाभ उठाया जाता है, वह भी विरुद्धराज्यातिक्रम है। ___ ४ होनाधिकमानोन्मान-मापने या तौलनेके न्यूनाधिक बाँटोसे देन-लेन करना होनाधिकमानोन्मान है।
५. प्रतिरूपकव्यवहार असली वस्तुके बदलेमे नकली वस्तु चलाना या असलोमे नकली वस्तुमिलाकर उसे बेचना या चालू करना प्रतिरूपकव्यवहार है।
वास्तवमे इन अतिचारोका उद्देश्य विश्वासघात, वेईमानी, अनुचित लाभ आदिका त्याग करना है।
अचौर्याणुव्रतकी शून्यागारावास-निर्जन स्थानमे निवास, विमोचितावास-दूसरेके द्वारा त्यक्त आवास, परोपरोधाकरण-अपने द्वारा निवास किये गये स्थानमे अन्यका अनवरोष, भेक्ष्यशुद्धि-भिक्षाके नियमोका उचित पालन करना एव सधर्माविसवाद ये पाँच भावनाएं है।
स्वदारसन्तोष-मन, वचन और कायपूर्वक अपनी भार्याके अतिरिक्त शेप समस्त स्त्रियोके साथ विषयसेवनका त्याग करना स्वदारसन्तोषव्रत है। जिस प्रकार श्रावकके लिए स्वदारसन्तोषव्रतका विधान है उसी प्रकार श्राविकाके लिए स्वपतिसन्तोषका नियम है। काम एक प्रकारका मानसिक रोग है। इसका प्रतिकार भोग नही, त्याग है। रोगके प्रतिकारके लिए नियन्त्रित रूपमे विषयका सेवन करना और परस्त्रीगमनका त्याग करना ब्रह्मचर्याणुव्रत या स्वदारसन्तोषमे परिगणित है। यह अणुव्रत जीवनको मर्यादित करता है और मैथुनसेवनको नियन्त्रित करता है। इस व्रतके निम्नलिखित पाँच अतिचार है।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ५१९