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१. खेत और मकानके प्रमाणका आंतकम। २. हिरण्य और स्वर्णके प्रमाणका अतिक्रमण । ३. धन और धान्यकै प्रमाणका अतिकमण । ४ दास और दामोके पमाणमा अनिकगण | ५ कुप्प-भाण्ड (वतंन) आदि प्रमाणवा अतिक्रमण ।
इस व्रतका :न्द्रियोंके मनोश विषयोमे गग नही करना और अमनोज्ञ विषयोमे द्वेष नहीं करना रूप पांच भावनाएं हैं। गुणयत और शिक्षायत
अणुव्रतोकी मम्मुष्टि, वृद्धि और रक्षाके लिए तीन गणव्रत और चार शिक्षाप्रतोंका पामगारना जायस्या है। इन तीनो पालनगे मुनिवतो गहण करनेको शिक्षा प्राप्त होता है । गुणत्रत तीन है
१.दिगनत। २ देशवत या देशावफाशिकरत । ३ अनयंदाउरत। दिगवत-मनुष्यको अभिलाषा आता गमान सोम और अग्निक ममान ममग मलपर अपना एबटन नाम्राज्य स्थापित करनेका मधुर स्वप्न ही नहीं दयनो, अपितु उग स्वप्नको माकार रनेक लिए समस्त दिशाओम विजय करना चाहती है। अर्थलालूपों मानव तृष्णाके वश होकर विभिन्न देगोमे परिभ्रमण करता है और विदगोमे व्यापारसम्थान स्थापित करता है। मनुष्यको म निरकुन तृष्णाको नियन्त्रित करनेक लिए दिनतका विधान किया गया है।
पूर्वादि दिशाओम नदी, ग्राम, नगर आदि प्रसिद्ध स्थानोका गर्यादा बांधकर जन्मपर्यन्त उममे बाहर न जाना और उसके भीतर लेन-देन करना दिग्यत है। इस व्रतके पालन करनेमे क्षेत्रमर्यादाके बाहर हिसादि पापोका त्याग हो जाता है और उम क्षेत्रमे वह महाव्रतीतुल्य बन जाता है। दिग्यतके निम्नलिखित पांच अतिचार है
१ कलव्यतिक्रम-लोभादिवश कर्वप्रमाणका अतिक्रम। २ अघोव्यतिक्रम-वापी, कूप, खदान आदिको अव.मर्यादाका अतिक्रम । ३ तिर्यग्व्यतिक्रम-तिरछे रूपमे क्षेत्रका अतिक्रम। ४. क्षेत्रवृद्धि-एक दिशासे क्षेत्र घटाकर दूसरी दिशामे क्षेत्रप्रमाणको
वृद्धि।
५ स्मृत्यन्तराधान-निश्चित की गई क्षेत्रको मर्यादाका विस्मरण ।
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना . ५२१