SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम वसुधा पाने को कर में ये आठों द्रव्य लिये। सहज शुद्ध स्वाभाविकतासे निजमे निज गुण प्रकट किये। ये अर्घ समर्पण करके मैं श्री देव शास्त्र गुरु को ध्याऊँ। विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर सिद्ध प्रभु के गुण गाऊ ॥ शेदवावगुरुभ्यः, श्री विद्यमान विशति तीर्थकरेभ्यः, श्री अनन्तानन्त लिदियो, मनपदमाये मयं निर्वपामोति स्वाहा ॥ ६ ॥ जयमाला नसे घातिया कर्म अर्हन्त देवा, करें सुर असुर नर मुनि नित्य सेवा । दरगनान मुख बल अनन्तके स्वामी, छियालीस गुण युक्त महा ईश नामी। तेरी दिव्य वाणो सदा भव्य मानी, महा मोह विध्वसिनी मोक्ष दानी। अनेकान्तमय हादशांगी वखानी, नमो लोक माता श्री जेन वाणी ॥ विरागो अचारज उवज्झाय साधू , दरश ज्ञान भण्डार समता अराधू। नगन वेपधारी नुएका विहारी, निजानन्द मंडित मुकति पथ प्रचारी।। विदह क्षेत्र में तोवर वीस राजे, विहरमान बन्दु सभी पाप भाजें। नम सिह निर्भय निरामय सुधामी, अनाकुल समाधान सहजाभिरामी। छन्द देव शास्त्र गुरु बीस तीर्थकर सिद्ध हृदय बिच धरले रे। पूजन ध्यान गाल गुण कर के भवसागर जिय तरले रे ॥ ॐही श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्य , श्री विद्यमान विंशति तीर्थकरेभ्य , श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेटिभ्यो अनघंपदप्राप्तये अचं निर्वपापोति स्वाहा ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy