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जैन पूजा पाठ सप्रह
जड दीप विनश्वर को अबतक समझा था मैंने उजियारा । निज गुण दरशायक ज्ञान दीपसे मिटा मोह का अंधियारा ॥ ये दीप समर्पित करके मै श्री देव शास्त्र गुरु को ध्याऊ । विद्यमान श्री बीस तीर्थङ्कर सिद्ध प्रभु के गुण गाऊ । _ ॐ ही श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्य , श्री विद्यमान विशति तीर्थङ्करेभ्य , श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठिभ्यो, मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामोति स्वाहा ॥ ६ ॥ ये धूप अनल मे खेने से कर्मों को नहीं जलायेगी। निज मे निज की शक्ती ज्वाला जो राग द्वेष नशायेगी । उस शक्ति दहन प्रगटानेको श्री देव शास्त्र गुरुको ध्याऊँ। विद्यमान श्री बीस तीर्थङ्कर सिद्ध प्रभु के गुण गाऊ ।। __ॐ ह्री श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्य , श्री विद्यमान विशति तीर्थङ्करम्य , श्री अनन्तानन्त 'सिद्ध परमेष्ठिभ्यो, अष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ।। ७ ।। पिस्ता बदाम श्री फल लवग चरणन तुम दिग मै ले आया। प्रातमरस भीने निजगुण फल मम मन अब उनमे ललचाया ।। अब मोक्ष महा फल पानेको श्री देव शास्त्र गुरुको ध्याऊँ। विद्यमान श्री बीस तीर्थङ्कर सिद्ध प्रभु के गुण गाऊँ ।
ॐ ही श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्य , श्री विद्यमान विशति तीर्थङ्करेभ्य , श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठिभ्यो, मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामोति स्वाहा ।। ८ ।।