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जैन पूजा पाठ मग्रह
मत भविष्यत् वर्तमान की, तीस चौबीसी मैं ध्याऊ । चैत्य चैत्यालय कृत्रिमाकृत्रिम, तीन लोक के मन लाऊँ। ॐ ही त्रिकाल सम्बन्धी तीस चौबीसी त्रिलोक सम्बन्ची कृत्रिमाकृत्रिम चैत्यालयेभ्यो अधु० चैत्य भक्ति आलोचना चाहूँ कायोत्सर्ग अघनाशन हेत । कृतिमाकृत्रिम तीन लोक मे राजत है जिनबिम्ब अनेक ॥, चतुर निकाय के देव जजें ले अष्ट द्रव्य निज भक्ति समेत । निज शक्ति अनुसार जजं मैं कर समाधि पाऊँ शिव खेत ।।
पुष्पाजलि क्षिपेत् । पूर्व मध्य अपराह्न की वेला पूर्वाचार्यों के अनुसार । देव बन्दना करूं भाव से सकल कर्म की नाशन हार ।। पश्च महा गुरु समिरन करके कायोत्सर्ग करू सुख कार। सहज स्वभाव शुद्ध लख, अपना जाऊगा अब मै भव पार ॥
( कायोत्सर्ग पूर्वक ह बार णमोकार मन्त्र जपें) शोडष कारण भावना भाऊ, दशलक्षण हिरदय धारू। सम्यक रत्नत्रय गहि करके अष्ट कर्म बन को जासू॥ ____ ही षोडश कारण भावना दशलक्षण धर्म सम्यक् रत्नत्रयेभ्यो अर्घ० । श्री कैलाशपुरी पावा चम्पा गिरिनार सम्मेद जजू । तीरथ सिद्ध क्षेत्र अतिशय श्री चौबीसों जिनराज भज ।।
ॐ ही श्रोचतुविशति तीर्थकरेभ्य तथा सिद्धक्षेत्रातिशयक्षेत्रेभ्यो अघ० ।।