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जैन
यो समाधि उरमाही तावा, अपनो हित जो चाहो, तज ममता अरु जाठी मदको जोतिस्वरूपी ध्यावो । जो कोई नित करत पयानो, ग्रामान्तर के का, सो मी शकुन विचारै नीके, शुभ के कारण साजे ॥ ५०१ मातादिक जरु सर्व कुटुम्ब सौ, नोको शकुन बनावे, हलदी धनिया पुनो जक्षत, दूव दही फल लावे | एक ग्राम के कारण एते करें शुभाशुभ सारे, जब परगति को करत पयानो, तउ नहि सोचे प्यारे ५१८
सर्व कुटुम्ब जब रोवन लागे, तोहि रुनावे सारे, ये अपशकुन करें सुन तोको, तू यो क्यो न विचारे । जब परगति को चालत विरिया, धर्मध्यान उर आना चारो
पूजा पाठ समह
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पञ्च उभव नव एक नम, लाश्विन श्यामा सप्तमी,
आराधन आराधा, माहतनो दुख हानो ॥ ५२ ॥ हृनि शल्य तजो सब दुविधा आतमराम सुध्यावो, जब परगति को करहु पथानो परम तत्व उर तावो । मोह जानको काट पियारे, अपनी रूप विचारो मृत्यु मित्र उपकारी तरी, यो उर निश्चय धारो [ ५३ 6
दोहा - मृत्युमहोत्सव पाठको पढो सुनो बुधिवान । सरधा घर नित सुरू लहो, सूरचन्द्र शिवधान सबतै सो सुखदाय | कह्यो पाठ मनलाथ 8