________________
जय पूजा
१
"
पुत्र चिलाती नामा मुनि को, बैरी ने तन घातो, मोटे-मोटे कोट पडे तन, तापर निज गुण रातो । यह उपसर्ग सह्यो घर धिरता, जाराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्युमहोत्सव बारी ॥ ४३ ॥ दण्डकनामा मुनि की देही, बाणन कर अति भेदी, तापर नेक डिगे नहि वे मुनि, कर्म महारिपु छेदी । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥ ४४ ॥ अभिनन्दन मुनि आदि पांच सौ घानि पेलि जु मारे तो भी श्रीमुनि समता धारी, पूरब कर्म विचारे । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी, तो तुमरे जिथ कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥ ४५ ॥ चाणक मुनि गौधर के माही, मन्द अननि पर जाल्यो श्रीगुरु उर समभाव धारके, अपनो रूप सम्हाल्यो । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी, त्तौ तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ०४६ ० सात शतक मुनिवर ने पाथो, हस्तनापुर मे जानो, बलिब्राह्मण कृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहि मानो । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥ ४७ ॥ लोहमयी आभूषण गढके, ताते कर पहराये, पांचो पाण्डव मुनि के तन में, तो भो नाहि चिगाये । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी,
"
तो तुपरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥ ४८ ॥
और अनेक भये इस जग मे, समता रस के वे ही हमको हो सुखदाता, हर हैं टेव सम्यक् - दर्शन ज्ञान चरन तप, ये आराधन ये ही मोकू सुख के दाता, इन्हे सदा उर धारो ॥ ४६ ॥
स्वादी
"
प्रमादी |
चारो,