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जैन पूजा पाठ सप्रह
समन्तभद्र मुनिवर के तन मे क्षुधावेदना भाई , तो दुख मे मुनि नेक न डिगियो, चित्यो निजगुण भाई। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, माराधन चितधारी , तौ तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥३६॥ ललितघटादिक तीस दोय मुनि, कौशाम्बीतट जानो , नदी मे मुनि बहकर डूबे, सो दु ख उन नहि मानो । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥३७।। धर्मकोष मुनि चम्पानगरी, बाह्म ध्यान धर ठाढ़ो , एक मास की कर मर्यादा, तृषा दुख सह गाढ़ो। यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी , तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥३८।। श्रीदत्तमुनि के पूर्व जन्म को, बैरी देव सु जाके , विक्रिय कर दु ख शीततनो, सो सह्यो साधु मनलाके । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, माराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ।। ३६ ।। वृषमसेन मुनि उष्ण शिला पर, ध्यान धरयो मनलाई , सूर्य धाम अरु उष्ण पवन की, वेदन सहि अधिकाई । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी , तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ।।४०।। अभयघोष मुनि काकदीपुर, महावेदना पाई , बैरी चन्डने सब तन छेद्यो, दु ख दोनो अधिकाई । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, माराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारो॥४१॥ विद्य त चर ने बहु दु ख पायो, तो मी धीर न त्यागी , शम भावना से प्राण तजे निज, धन्य और बड़भागी। यह उपसर्ग सह्यो धर धिरता, माराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ।। ४२।।