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मेन पूजा पाठ समह
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मन थिरता करके तुम चिन्तो, चौ आराधन भाई, वे ही ताको सुख की दाता, और हितू कोउ नाही । आगे बहु मुनिराज भये है तिन गर्हि थिरता भारी, बहु उपसर्ग सहै शुभ भावन, आराधन उर धारी ॥ २६ ॥ तिनमे कछुइक नाम कहूँ मै, सुनो जिया चित लाके, भावसहित जनुमोदे तासे, दुर्गति होय न जाके । अरु समता निज उर में जावे, भाव अधीरज जावे, यो निशदिन जो उन मुनिवर को, ध्यान हिये बिच लावे ||३०|| धन्य-धन्य सुकुमाल महामुनि, कैसे धीरज धारी, एक इथालनी युगबच्चायुत, पवि मरुयो दुखकारी । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, जाराधन चित धारी. तो तुमरे जिय कौन दुख है, मृत्यु महोत्सव बारी ||३१|| धन्य-धन्य जु सुकौशल स्वामी, व्याघ्री ने तन खायो
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तो मी श्रीमुनि नेक डिगो नहि, आतमसो हित लायो । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, जाराधन चित धारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है । मृत्यु महोत्सव बारी ||३२||
देखो गजमुनि के सिर ऊपर, विप्र अगिनि बहु बारी, शीश जलै जिमि लकडी तनको, तो भी नाहि चिगारी । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, जाराधन चित धारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है, मृत्यु महोत्सव बारी ॥३३॥ सनत्कुमार मुनि के तन मे, कुष्ठ वेदना व्यापी, छिन्नभिन्न तन तासो हूवो, तब चिन्त्यो गुण आयो । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, जाराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है, मृत्यु महोत्सव बारी ||३४|| श्रेणिकसुत गगा में डून्यो, तब जिन नाम चितारयो, धर सलेखना परिग्रह छोड्यो, शुद्ध भाव उर धारयो । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, जाराधन चितधारी, तौ तुमरे जिये कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥ ३५ ॥
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