SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 455
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन पूजा पाठ संप्रद - पद जग के ऊपर हा जाता मंवरे-सा काला धकार, सरज की एक किरस उसको ख में कर देती हार-छार, वेसे ही भव भव के पातक जो भी सश्य हो जाते हैं. तेरी स्तुति के द्वारा ही सय बरा में भय हो जाते है । ७। ज्यों कमत पत्र के ऊपर पड़ जल की वदं मन हरती है मोती समान लामा पाकर जो जगमग-जगमग करती हैं, बस उसी तरह यह स्तुति मी तेरे घरसो का दल पाकर, विद्वानों का मन हर सेगी मुझ मल्प युद्धि द्वारा गाकर 15. हे बिनदर तेरो कथा हो पर हर पधा दूर कर देती है. फिर स्तुति का कहना हो या जो कोटि पाप हर लेती है, से सूरज को उपयोती मग का हर काम चलाती है, पर उससे पहिसे को साती कमतो के झुण्ड सिताती हैं ।।। हे भुवनरत । है त्रिभुवनपति को तेरी स्तुति गाते हैं, नामवर्य नही इसमें कुछ भी दो तुम से धन जाते हैं, पैसे उदार स्वामो पाकर सेवक धनवाते बन जाते. है जन्म व्यर्थ पग में उनका मो पर के काम नही माते । १० । पो चन्द्र किरण सम उज्ज्वस पत मोठा क्षीरोदधि पान करे, वह नवखोदधि का धारा जस पाने का कमी न ध्यान करे. वैसे ही तेरी धोतराग मुद्रा को नेत्र देख तेते, तो उन्हें सरागी देव कमी अन्तर में शान्ति नही देते । १५ । जितने परमाणु शुद्ध नग में उनसे निर्मित तेरी काया, इसलिये माप बेसा सुन्दर दूजा न कोई नजर आया देवा को अति सुन्दर कान्ति जो नेत्रो में गड़ जाती है पर वही कान्ति तेरै सन्मुस जाते फोकी पड़ जाती है । १२६ है नाय जाप का मुख मण्डल सुर नर के नेत्र हरण करता, दनिया को सन्दर उपमायें कर सके नही जिसको समता, कान्तिहीन चन्दा दिन में बस टाक पत्र-सा सगता है, यह भी जिन के सुन्दर मुख को उपमा केसे पा सकता है। १३ ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy