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जैन पूजा पाठ सग्रह
मैं निशि-निशि आस्य तुझि पास, तू तो महा शर्म की राशि | तिलकमती पूछै सिरनाय, कहा नाम तुम मोहि बताय ॥ राजा गोप को निज नाम, इम सुणि तिय पायो सुखधाम । यू कहि अपने थानिक गयो, तबसे ही परभात सु भयो । बन्धुमती कहि कपट विचार, तिलकमती है अति दुःखकार । व्याह समय उठि गई किनि थान, जन जन से पूछे दुःखमान ॥
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दोहा - देखो ऐसी पापिनी, गई कहां दुःखद्याय |
दूढत ढूढ़त कन्यका, लखी मसाणां जाय ॥ ६० ॥ जाय कहै दुःखदा सुता, इनिथानिक किमि आय | भूत प्रेत लागो कहां, ऐसी विधि बतलाय ॥ ६१ ॥ चौपाई – तिलकमती भाषै उमगाय, तैं भाख्यो सो कीन्हूं माय । बन्धुमती कहिं त्वङ्गपुकार, देखो तो इह असत्य उचार ॥ जानूं कहा क इह आय, व्याह समै दुःख दिया अघाय । तेजोमती विवाहित करी, सावा की समये नहिं टरी || पुनि भाषी उठि चल घर अबै ले आई अपने घर जबै । तिलकमती सों पूछें मात, तै कैसो वर पायो रात ॥ सुता को परियो हम गोप, रैनि परणि परभात अलोप । बन्धुमती भाषी ततकाल, री ! तैं वर पायौ गोपाल ॥ दोहा - घर इक गेह समीपथो, सो दीन्हों दुःखपाय |
नित प्रति रजनी के विषै, आवै तहां सुराय ॥ ६६ ॥ दीप निमित्त नही तेल दे, तबही अन्धेरे मांहि । राजा तैठेही रहे, सुख पावै अधिकांहि ॥ ६७ ॥
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