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बेन पूजा पाठ संग्रह
चौपाई-फइक दिन पुनि ऐसे गये, वन्धुमती तब यूं व कहे। - तोहि गुवाल्या ते कहि जाय, दोय बुहारी तो दे लाय
तिलकमती आरे करि लई, रात्रि भये निज पतिपै गई। करि क्रीड़ा सुख वचन उचार, नाथ सुणूं अरदास हमार ।। जुगल बुहारी मेरी माय, जाची हैं तुमपै हरपाय । यात ला दीज्यो तुम देव, अङ्गी कीन्हूं भूप स्वमेव ।। सभा जाय बेख्यो तब राय, स्वर्णकार तब सार बुलाय ! तिनत कही बुहारी दोय, अब करो जो उत्तम होय ॥ इम सुनि तवहीं कश्चनकार, लागि गये गढ़ने अधिकार । स्वर्णसींक सबके मन मोहि, रत्न जड़ित मूख्यो अति सोहि ॥ पोड़श भूषण और मंगाय, डाबा में धरि चाल्यो गय। एक वेश उत्तम करि लियो, रजनी समय नारि ढिग गयो । रतन जड़ित की कोर जु सार, शोभै सारी के अधिकार । भूपण वेश दये नृप जाय, दोय बुहारी लखित सुहाय ॥ नारि चरण नृप के तव धोय, सिरकेशनि से पूछत थोय । कोड़ा करि बहुते सुख पाय, प्रात भये नृप तो धरि जाय । तिलकमती अति हर्पित होय, जाय दई सु बुहारी दोय ।
और दिखाये भूषण वेश, माहीं देख्यो सार जु वेश ।। मन में दुःखित वचन इमि कहो, तेरो भरता तस्कर भयो। राजा के भूषण अरु वेश, लाय दये तोकू जु अशेप ।। हम सबकू दुःखद्यासी सोय, इम कहि खोसि लये दुःखि होय । - यह दलगीर भई अधिकाय, रात वि पति सों कहि जाय ।