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जन पूजा पाठ सग्रह
बन्धुमती फेरांकी वार, तिलकमती बहु भांति सिंगार। घडी दोय रजनी जब गई, तिलकमतीकू निज संग लई ।। जयहि मसाण भूमि मधि जाय, पुत्री लिह धान बैठाय।. तहां दीप जोये शुभ चारि, पूरे तेल उद्योत अपारि ।। चौगिरधा दीपक चउधरे, मध्य तिलकमती थिरता करे। तिलकमतीसों भापी जहां, तौ भरता आवेगो यहां ॥ ताहि विवाहि आवजे वाल, इमि कहि कर चाली तत्काल । आधी रात गये तब राय, महल थकी लखि वितरक लाय॥ नृप ने सन इम निश्चय कियो, अवशि देखिये जो कछु भयो। 'देवसुता वा यक्षिन कोय, ना जाने वा किन्नर होय ।। । केह नारी इहां को आय, ऐसी विधि चितवन करि राय।
हस्त खड्गले चालो तहां, तिलकमती तिठे थी जहां ॥ दोहा-जाय पूछियो रायजी, तूं कुण है इनि थान ।
तिलकमती सुण के तवै, ऐसी भांति वखानि ।। ८२ ॥ भूपति मेरे तातक, स्तन सुदीप पठाय ।
मोकू मम माता इहां, थापि गई अब आय ॥ ८३ ॥ चौपाई-भाखि गई इनि थानिक कोय, आवेगो ते भरता सोय।
यातें तुम आये अब धीर, मैं नारी तुम नाथ गहीर ॥ सुणि राजा तव व्याहसु करयो, रैनि रखो तैठे सुख घो। राजा प्रात समै अव लोय, निज मन्दिरकू आवनि होय ॥ तिलकमती ऐसे तब कही, अब तो तुम मेरे पति सही। सर्प जेमि डसि जावो कहां, सुनि इमि भा भूपति तहां ॥