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जैन पूजा पाठ मह
जव सुगन्ध दशमी व्रत धरै, तब कन्या अघ सचय हर। कसी विधि याकी मुनिराय, तव ऋपि भादवमास वताय ॥ सुदि पञ्चमि दिनसों आचर, यथाशक्ति नवमीलों कर। दशमी दिन की उपवास, ता करि होय अधिक अवनास ॥ शुक्ल पक्ष दशमी दिन सार, दश पूजा करि वसु परकार । दश स्तोत्र पढ़िये मनलाय, दश मुख का घटसार वनाय ॥ ता में पावक उत्तम धरै, धूप दशांग खेय अघ हरे। सप्त धान्य को साथ्यो सार, करि तापरि दश दीपक धार । ऐसे पूज कर मनलाय, सुखकारी जिनरान वताय !
ताते इह विधि पूजा करै, सो भवि जीव भवोदघि तरै ॥ दोहा-जिनकी पूज समान फल, हुवो न हसी कोय ।
स्वर्गादिक पद को करै, पुनि देहे शिव जोय ॥ ४८॥ चौपाई-दश संवत्सरलों जो कर, ताही के जिन गुण अवतरै।
कर बहुरि उद्यापन राय, सुनहु सुविधि तुम मन वचकाय ॥ महाशान्तिक अभिषेक करेय, जिनवर आगै पुहुप घरेय । जो उपकरण धरे जिन थान, ताको भेद सुण चित आन ॥ दश जु वर्णको चन्दवो लाय, सो जिन विम्ब उपरि तणवाय।
और पताका दश घन सार, वाजै घण्टानाद अपार ।। मुक्ति माल की शोभा करै, चमर युगल छवि अनुपम धरै । और सुणं आर्गे मनलाय, प्रभु की भक्ति किये सुख थाय ।। धूपदहन दश आरति आनि, सिंह पीठि आदिक पहचानि । इत्यादिक उपकरण मंगाय, भक्ति भाव जुत भन्य चढ़ाय ।।