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________________ जन पूजा पाठ सप्रह ४२३ दान आहार आदि उच देय, ताकरि भविअधिकौ फल लेय । आर्याको अम्बर दीजिये, कुण्डी श्रुत नजरे कीजिये ।। यथा योग्य मुनि को दे दान, इत्यादिक उद्यापन जान । जो नहिं इतनी शक्ति लगार, थोरो ही कीजे हितधार ।। जो न सर्वथा घर में होय, तो दृण कीजे व्रत सोय । पणि व्रत तौ करिये मनलाय, जो सुर मोक्ष सुथानक दाय ।। दोहा-शाक पिण्ड के दानते, रतन वृष्टि ह राय। यहां द्रव्य लागो कहां, भावनिकौ अधिकाय ॥ ५७॥ तात भक्ति उपायके, स्वातम हित मनलाय । व्रत कीजै जिनवर कयो, इम सुणि करि तव राय ।। ५८ ॥ सौपाई-द्विज कन्या को भूप बुलाय, व्रत सुगन्ध दशमी वतलाय । राय सहाय थकी व्रत करयो, पूरव पाप सकल तब हरथो । उद्यापन करि मन वप काय, और सुण आगे मन लाय। एक कनकपुर जाणो सार, नाम कनकप्रभु तसु भूपाल ।। नारि कनकमाला अभिराम, राजसेठ इक जिनदत्त जु नाम ।। जाके जिनदत्ता वर नारि, तिहि ताकै लीन्हूं अवतारि ॥ तिलकमती नामा गुण भरी, रूप सुगन्ध महा सुन्दरी । क्यू इक पाप उदै पुनि आय, प्राण तजे ताकी तब माय ॥ जननी विन दुःख पावै वाल, और सुण श्रेणिक भूपाल । जिनदत्त यौवनमय थौ जबै, अपनो व्याह विचारो तवे ।। इक गौधनपुर नगर सुजान, वृषभदत्त वाणिज तिहिं थान । ताके एक सुता शुभ भई, बन्धुमती वसु संज्ञा दई ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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