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जैन पूजा पाठ सग्रह
याकी मात भैंस मर गई, तब ये अति दुर्बलता लई । एक समय कदम मधि जाय, मग्न भई ताला दुःख पाय ।। २१ ॥ तहां थकी देख्यो मुनि कोय, सीग हलाये क्रोधित होय । तवही पफ वि गडि गई, प्राण छोरि खरणी उपमई ॥ २२ ॥ भई पाँगुरी पिछले पाय, तबही एक मुनीश्वर आय । पूरव वैर सु मन मे ठयो, तहां कलुप परिणाम जु भयो ।॥ २३ ॥ दोहा-कियो क्रोध मन में घणू, दई दुलाती जाय ।
प्राण छोरि निज पापतै, लई करी काय ॥ २४ ॥ स्वानादिक के दुःखत, भृसी प्यासी होय ।
मरिकर चण्डाली सुता, उपजी निन्दित सोय ॥ २५ ॥ चौपाई-गर्भ आयतां विनस्यो तात, उपजता तन त्यागो मात ।
पालै सुजन मरै फुनि सोय. अरु आवत तन में बदबोय ॥ इक योजनलो आवै वांस, ताहि थकी आवै नहिं सांस । पञ्च अभख फल साबो करै, ऐसी विधि वन में सो फिरै ।। यहां एक मुनि शिष्य जु देख, राग द्वप तजि शुद्ध विशेष ! ता वन में आये गुण भरे, लघु मुनि गुरुसों प्रश्न जु करे ।। वासनिन्ध आवे अधिकाय, स्वामी कारण मोहि बताय । मुनि भार्थं सुनि मनवचकाय, जो प्राणी ऋपि को दुःखदाय ॥ ते नाना दुःख पावै सही, मुनि निन्दा सम अघको नही। कन्या ईनि पूरव भयसाहि, मुनि दुःखायो थो अधिकाहिं ।। ता करि तिरजगमे दुःख पाय, भुई वधिकक कन्या आय । सो इह देखि फिरतु है वाल, मुनि सशय भागौ तत्काल ।।