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मा STERED
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श्रीमती बार्क पर नारि, निन पति अति ही सुसकारि। एक समय बन कीड़ा हेत, जात हतो निज सैन्य समेत ॥ १०॥ निज पुरम से जप ही गयो, तर मन माही आनन्द लयो। सपही एक सुनीम्बर सार, मास पाम फरिक भवतार ।। ११ ॥ जनन काजिमाते मुनि जोग, राणीसा भासे नृप सोय।। तुम जानो पो भोजन सार, कोजी मुनिकी भक्ति अपार ।। १२ ।। हम मुणि गपी मनम यो, भागों में मुनि अन्तर करो। दुपारी पापी मुनि आय, मेरे मुयान दियो गमाय ॥ १३ ॥ मनदी में दुमी अनि पणी, आता मान चली पति तणी। आप भोजन तत्काल, जाग बार उनी भृपाल ॥ १४ ॥ निरनिरूही घर गयो, राणी असन महानिन्द दयो। फर्गदर्ग को जु जहार, दिशगनीय दुःसकार ॥ १५ ॥ गोसनकारि नाले मुनिगर, मारग मादि गहल अति आय। परती भूमि पर तर मुनिगल, कियो सायका देखि इलाज ।। १६ ।। नंटे एक मिनालय मार, नहीं ले गये परि उपचार । फेगिरल में वर की, राणी पोटो भोजन दयो ॥१७॥ जात नी महा दुःख पाय, मान्य हो गये है अधिकाय । धिर-धिक है नामी अति पण, दुष्ट स्वभाव अधिक जा तणू ॥ १८ ॥ तबही पनों गायों राय, गुणी बात राजा दुःस पाय । रानीनों गोटं बच कहे, पन्नाभरण खासि करि लये ॥ १६ ॥ कादि दई घर बाहरि जर्ष, दुःखी भई अति ही सो त । अष्टातर आरत फियो, प्राण छोरि महिपी तन लियो ॥२०॥