________________
पत्ता ।
जिनवाणी माता सब सुख दाता. भवभ्रमहर मुक्तिकरा । शुभ सूत्रहिं शास्त्रहिं, वारहि चारहि दासजोरिकरनमनकरा
ॐ श्रीमातीपासून अयंनिपानीति
जे पूजें घ्यावें भक्ति वढावै जिनवाणी सेती । ते पावहिं धन धान्य सम्पदा पुत्र पौत्र जेती ॥ निरोग शरीर लहे कीरति जग हरें भ्रमण फेरी । अनुक्रम सेती लहें मोक्षधल तह के होय वसेरी ॥
इति श्री पूजा सना ।
श्री ऋषभदेवके पूर्वभव कवित्त गनहर |
यादि जयवर्मा दूजे महानलभूप तीज,
चौथे प्रजनंघ एक पांच जुगल देह
४१७
तुम्ईशान ललिवांग देव थयौ है ।
सात बुद्दिराय आठवें अच्युतइन्द्र,
つい
सम्यक ले दूज देवलोक फिर गयो है ॥
दर्श अहमिन्द्र जान प्यार ऋषभ - भानु,
नवमे नगेन्द्र वज्रनाभ नाम भयो है ।
नाभिनंद-भूधरके, शीस जन्म लयी है ॥ ८२ ॥