________________
४१६
उन पूजा पाठ सह
पादाकुला छन्दसंसार मोह में मोह तरा, प्रगटी जिनवाणी मोह हग । ऊद्धरत हो तम नाश कग, प्रणमामि र जिनवाणि वरा ॥ अति मानसरोवर झील खरा, कन्णाग्न पूरित नीर भरा। दश-धर्म वहे शुभ हम तरा, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वग। कल्पद्र म के मम जानतरा, रत्नत्रय के शुभ पुष्ट वा । गुण तत्व पदार्थन पात्र करा, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वरा ॥ वमुकर्म महारिपु दुष्ट खरा, तसु उपजी जैली वेली बरा। तसु नागन वाहि कुठार करा, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वरा ।। मद मायर लोमऽरू क्रोध धग, ए कपाय महादु.सदाय तरा। तिन नाशि भवोदधि पार करा, प्रणमामि मूत्र जिनवाणि वरा ।। वर षोडग कारण भाव धरा, पट कायन रक्षण नियम करा। मद आठह मदि के गर्द करा, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वरा ।। जिनवाणि न जाने त्रिजगत फिरा, जड़ चेतन भाव न भिन्न वरा।। नहिं पायो आतम बोध वरा, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वरा ॥ शुम-कर्म उद्योत कियो हियरा, जिरवाणिहि जान जन्यो जियरा। भवमर मणहर शिव मार्ग धग, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वरा ॥ सुत कन्हैयालाल परणाम करा, भगवानदास जिहि नाम धरा। जिनवाणि वसोनित तिहि हियरा, प्रणमामि सूत्र जिनवाणि वरा।।