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तुमसे प्रोतमको दुःख दीने ते सब छमियो भाई ॥ ५ ॥ धन धरती जो मुखसों मांगे सो सब दे सन्तोषै । छहों कायके प्राणी ऊपर करुणा भाव विशेषै ॥ ऊँच नीच घर बैंठ जगह इक कुछ भोजन कुछ पय लै । दूधाहारी क्रम क्रम तजिके छाछ आहार गहे लै ॥ ६ ॥ छाछ त्यागिके पानी राखै पानी तजि संथारा । भूमि मांहि थिर आसन मांडे साधर्मी ढिग प्यारा ॥ जब तुम जानो यह न जपे है तब जिनवाणी पढ़िये । यो कहि मौन लियौ सन्यासी पंच परम पद गहिये ॥ ७ ॥ चौ आराधन मनमें ध्यावै बारह भावन भावे । दशलक्षण मुनि धर्म विचारे रत्नत्रय मन ल्यावै ॥ पैंतीस सोलह षट् पन चारों दुइ इक वरण विचारै । काया तेरी दुःख की ढेरी ज्ञानमयी तूं सारे ॥ ८ ॥ अजर अमर निज गुणसों पूरे परमानन्द सु भावै । आनन्द कन्द चिदानन्द साहब तीन जगपति ध्यावै ॥ क्षुधा तृषादिक होय परीषह सह भावसम राखे । अतीचार पांचों सब त्यागे ज्ञान सुधारस चाखे ॥६॥ हाड़ मांस सब सूख जाय जब धर्मलीन तन त्यागे । अद्भुत पुण्य उपाय स्वर्ग में सेज उठे ज्यों जागे ॥
तह आवै शिव पद पावै विलसै सुक्ख अनन्तो । 'द्यानत' यह गति होय हमारी जैन-धर्म जयवन्तो ॥ १०॥