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जैन पूजा पाठ सप्रह
समाधिमरण भाषा
गौतम स्वामी बन्दों नामी मरण समाधि भला है । मैं कब पाऊँ निशिदिन ध्याऊँ गाऊँ वचन कला है ॥ देव धर्म गुरु प्रीति महा दृढ़ सप्त व्यसन नहिं जाने । त्यागि बाइस अभक्ष संयमी बारह व्रत नित ठाने ॥ १ ॥ चक्की उखरी चूलि बुहारी पानी त्रस न विराधे | निज करे पर द्रव्य हरै नहिं छहों करम इमि साधै ॥ पूजा शास्त्र गुरुन की सेवा संयम तप चहुँ दानी । पर उपकारी अल्प अहारी सामायक विधि ज्ञानी ॥ २ ॥ जाप जपै तिहुँ योग धरै दृढ़ तनकी ममता टारे । अन्त समय वैराग्य सम्हारै ध्यान समाधि विचारै ॥ आग लगै अरु नाव डूबै जब धर्म विघन जब आवे । चार प्रकार आहार त्यागि के मन्त्र सु मनमें ध्यावै ॥ ३ ॥ रोग असाध्य जहां बहु देखे कारण और निहारै । बात बड़ी है जो बनि आवे भार भवनको दारै ॥ जो न बने तो घर में रह करि सबसों होय निराला । मात पिता सुत त्रियको सोंपै निज परिग्रह इहिकाला ॥४॥ कुछ चैत्यालय कुछ श्रावकजन कुछ दुःखिया धन देई । क्षमा क्षमा सबहीं सों कहिके मनकी शल्य हनेई ॥ शत्रुन सों मिल निज कर जोरें मैं बहु करिहै बुराई ।