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यह गति अनिन्त तुम्हारी का पपा पा पार सयाना है। श्री. दामिन्टन भी मुम्बमदन रा. तुमरा प्रण परम प्रमाणा है। वरदान दया जन कीरत का, नि, लोक धुजा फहराना है। फमन रजी! मलारुम्जी, फरिये कमला अमलाना है। अपनी विधा अरोर मातिान पार लगाना है। श्री. हदीनानाथ अनारहित . उन टीन अनाथ पुकारी है। उदगागन फरिपार, नाल, मार विधा विस्तारी है। जो भार और मर जापनकी, ततकाल विधा निरवारी।
नहाना , अज कर, प्रभ गाज हमारी पारी है। श्रीह
दौलत पद अपनी लुधि भूल आप, आप दुख उपायो, . ज्या शुक नभचाल विसरि नलिनी लटकायो । अपनी
चंतन अविरुद्ध शुद्ध दरशयोधमय विशुद्ध, तजि जइ-मपरल रूप, पुदगल अपनायो॥ अपनीय इन्द्रिय सुख-दुम्ब से नित्त, पाग रागरुखमें चित्त, दायका भवविपतिबन्द, बन्धको बढ़ायो । अपनी चाहदाद दाहे, त्यागौ न ताह चाहै, समता-नुमान गाहे जिन, निकट जो वतायो। अपनी मानुपस नुकृत पाय, जिनवरशासन लहाय 'दौल निजस्वभाव भज अनादि जो न ध्यायो। अपनी०