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न पूजा पाठ पढ
पं० भूधरकृत स्तुति
पुलकन्त नयन चकोर पक्षी, हँसत उर इन्दीवरो । दुर्बुद्धि चकवी विलख बिछुड़ी, निविड़ मिथ्यात हरो ॥ आनन्द अम्बुज उमगि उद्धस्यो, अखिल आलम निरदले । जिन बहुत पूरणचन्द्र निरखत, सकल मनवांछित फले ॥ सम आज आतम भयो पावन, आज विधन विनाशिया । संसार सागर नीर निवढ्यो, अखिल तत्व प्रकाशिया ॥ अब भई कमला किंकरी, मम उभय भत्र निर्मल ठये । दुःख जस्यो दुर्गति वास निवस्यो, आज नव मंगल भये ॥ मन हरण सूरति हेरि प्रभु की, कौन उपला लाइये |
म कल तनके रोम हुलसे, हर्ष और न पाइये ॥ कल्याण काल प्रत्यक्ष प्रभुको, लखे जो सुर नर बने । तिह समयकी आनन्द सहिमा, कहत क्यों मुखलों वने ॥ भर नयन निरखे नाथ तुमको, और बांछा ना रही । म सब मनोरथ भये पूरण, रंक मानो निधि लही ॥ अब होऊ भव भव भक्ति तुम्हरी, कृपा ऐसी कीजिये । कर जोर 'भूधरदास ' विनवै, यही वर मोहि दीजिये ||