________________
तब विलंब नहि कियो-स्तुति दोहा-जास धर्म परभावसों. संकट कटत अनन्त ।
___मंगल मूरति देव सो, जैवन्तो अरहन्त ।। हे करुणानिधि सुजन को, कष्ट विर्षे लखि लेत । तजि विलंब दुःख नष्ट किय, अव विलंब किह हेत ॥ तव विलंब नहिं कियो, दियो नमिको रजता चल । तव विलंब नहि कियो, मेघवाहन लका थल । तव विलंब नहिं कियो, सेठ सुत दारिद भंजै । तब विलंब नहिं कियो, नागजुग सुरपद रंजै॥ इमिचर भूरि दुःख भक्तके, सुख पूरे शिवतिय वरन । प्रभु मोर दुःख नाशनविपे, अब विलंब कारण कवन॥ तब विलंब नहि कियो, सिया पावक जल कीन्हौं। तव विलंब नहिं कियो, चन्दना शृङ्खल छीन्हों॥ तव विलंब नहिं कियो, चीर द्रौपदी को वाट्यो। तव विलंब नहिं कियो, सुलोचना गंगा काढ्यो । इमि तन विलंब नहि कियो, सांप कियो कुसुम सुमाला। तव विलंब नहिं कियो, उर्मिला सुरथ निकाला॥ तब विलंब नहिं कियो, शीलवल फाटक खुल्ले। तब विलंब नहि कियो, अञ्जना वन मन फुल्ले ॥ इमि तव विलंब नहिं कियो, सेठ सिंहासन दीन्हौं। । तव विलंब नहिं कियो, सिंधु श्रीपाल कढ़ीन्हों॥