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जैन पूजा पाठ सप्रह
पचम वन्दना-कर्म वंद्र में जिननीर धीर महावीर सुलनलति । वर्द्धमान अतिवीर बंदि हूं मलवचतन कृत। त्रिशला तलुज महेश धीश विद्यापति वढूं। बंदौं लित प्रति कलकरूप तनु पापनिकन्दू ॥२१॥ लिद्धारथ लुपनन्द इन्द दुःख दोष लिटार ! दुरितवानल मलित उबाल जगजीव उधारन ।। कुण्डलपुर करि जन्म जगत जिय आनंद हारले ! वर्ष बहत्तर आयु पाच लबही दुःख टारल १९२६ सप्तहस्त लनु तुङ्ग भगकृत जन्म मरण भय । बालनामय क्षेय हेय आदेय ज्ञानमय ॥ दे उपदेश उधारि तारि भवसिंध जीवधन । आप बसे शिवमांहि ताहि वंदौं भन दच तल ॥२६॥ जाके बन्दनथकी दोष दुःख दूरहि जाये। जाके बन्दनथकी मुक्ति तिय सन्मुख आई ।। जाके बन्दनथकी वंद्य होवै सुरमनके । ऐसे वीर जिनेश बंदि हूँ मयुग तिलके ॥२४॥ सामायिक षटकमसांहि वन्दन यह पश्चल । बन्दौं वीर जिनेन्द्र इन्द्रशत वंद्य वंद्य मल ॥ जन्मलरणभय हरो करो अघशान्ति शान्तिमय । में अघकोष सुपोष दोषको दोष विनाशय ॥२५॥ कायोत्सर्ग विधान करूँ अन्तिम सुखदाई।