________________
1
तेन पूजा पाठ समद
जे त्रिजग उदर मंकार प्राणी तपत अतिदुद्धर खरे । तिन अहितहरन सुवचन जिनके, परम शीतलता भरे ॥ तसु भ्रमर लोभित घ्राणपावन सरसचंदन घसि सचूँ । अरहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निरग्रन्थ नित पूजा रचूँ ॥ दोहा - चन्दन शीतलता करे, तपत वस्तु परवीन । जासों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन |॥२॥
२३
ॐ ही देवशास्त्रगुरुभ्यो समाधिनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥
यह भवसमुद्र अपार तारण के निमित्त सुविधि टई । अति दृढ़ परमपावन जथारथ भक्ति वर नौका सही ॥ उज्जल अखंडित सालि तंदुल पुञ्ज धरि त्रयगुण जचूँ । अरहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु- निरग्रन्थ नित पूजा रचूँ ॥ दोहा - तंदुल सालि सुगन्ध अति, परम अखंडित वीन । जासों पूजौं परमपद देवशास्त्र गुरु तीन ॥३॥
ॐ ही देवास्त्रगुरुभ्योऽयपदप्रीतये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥
जे विनयवंत सुभव्य - उर- अम्बुजप्रकाशन भांन हैं । जे एक मुख चारित्र भापत त्रिजगमाहिं प्रधान हैं ॥ लहि कुंदकमलादिक पहुप, भव भव कुवेदनसों बचूँ । अरहन्त श्रुत-सिद्धांत गुरु-निरग्रन्थ नित पूजा रखूँ ।"